शैली एकटक बादलों की तरफ देख रही थी और सोच रही थी कि बहती हवाओं के साथ बदलती आकृतियों में ढलते रुई के फाहों से ये बादल के टुकड़े मन को कितना सुकून देते हैं. लगता है जैसे अपना ही वजूद वक्त के झोंकों के साथ कभी सिमट रहा है, तो कभी नए आयामों को छूने का प्रयास कर रहा है. एक अजीब सा स्पंदन था उस के मन के हर कोने में. लोग कहते हैं, प्रेम की उम्र तो बस युवावस्था में ही होती है. मगर शैली उस की अल्हड़ता को इस उम्र में भी उतनी ही प्रगाढ़ता से महसूस कर रही थी. उस का मन तो चाह रहा था कि वह भी हवा के झोंकों के साथ उड़ जाए. वहां जहां किसी की भी नजर न पड़े उस पर. बस वह हो और उस के एहसास.
वह बचपन से आज तक अपनी जिंदगी अपने ही तरीकों से जीती आई है. कभी जिंदगी की गति को चंद पड़ावों में नहीं बांटा वरन नदी के प्रवाह की तरह बह जाने दिया. उस दिन सुमित ने उसे छेड़ा था, ‘‘तुम दूसरों जैसी बिलकुल भी नहीं, काफी अलग तरह से सोचती हो और अपनी जिंदगी के प्रति तुम्हारा रवैया भी बहुत अलग है...’’
‘‘हां सच कहा. वैसे होता तो यही है कि लोगों की जिंदगी की शुरुआत में ही तय कर दिया जाता है कि इस उम्र में पढ़ाई पूरी करनी है, उस उम्र में शादी, बच्चे और फिर उम्र भर के लिए उसी रिश्ते में बंधे रहना. भले ही खुशी से ज्यादा गम ही क्यों न मिले. मैं घिसेपिटे फौर्मूले से अलग जीना चाहती हूं, इसलिए स्वयं को एक मकसद के हवाले कर दिया. मकसद के बगैर इंसान कितना अधूरा होता है न.’’ ‘‘पर मुझे तो लगता है कि जो इंसान अधूरा होता है, वही जीने के लिए मकसद तलाशता है.’’