न्याय की मांग है कि किसी को उस अपराध की सजा न दी जाए जो उस ने नहीं किया और उस के लिए जरूरी है कि आरोपी को अपने बचाव के सभी तर्क, सुबूत देने व गवाह और आरोप लगाने वालों से जिरह करने का हक हो. पर अभियुक्त, यानी जिस पर अपराध करने का आरोप हो, का यह हक किस तरह पीडि़ता को बारबार अपराध की घटना जीने को मजबूर करता है, यह दिल्ली में 5 दिसंबर, 2014 की रात को एक लड़की का उस के कैब ड्राइवर द्वारा बलात्कार के मामले से साफ है. आमतौर पर मामला दर्ज होने के बाद उसे भुला सा दिया जाता है पर चूंकि कैब अमेरिकी कंपनी उबेर द्वारा मुहैया कराई गई थी और पीडि़ता ने थोड़ी चतुराई भी दिखाई, इसलिए मामला लगातार सुर्खियों में है.

इस मामले में 17 जनवरी, 2015 को पीडि़ता का बयान दर्ज हुआ और उसे 10-20 मिनट नहीं 4 घंटे सफाई पक्ष के वकील की जिरह का सामना करना पड़ा. ड्राइवर का वकील यह सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है कि या तो संबंध हुआ ही नहीं या फिर यह सहमति से बना संबंध है. कैब ड्राइवर शिव यादव के बारे में जो रिपोर्टें मिली हैं उन के अनुसार वह अपनेआप को लड़कियों का चुंबक समझता है और उस ने बलात्कार जैसे कई कांड किए पर किसी ने शिकायत नहीं की  न्याय की मांग तो अपनेआप में सही है कि किसी पर झूठे आरोप न लगें पर उस तरह के मामले में बारबार सवालों का जवाब देना कि बलात्कार कब, कैसे, किस जगह, किस माहौल में, कितनी देर तक, क्याक्या बोल कर किया गया एक तरह से एक पीडि़ता को उस पर हुए अत्याचार की फिल्म बारबार देखने को मजबूर करना है.

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