" बेटे आप दोनों को गिफ्ट में क्या चाहिए? " मुंबई जा रहे लोकनाथ ने अपनी बच्चियों पलक और महक से पूछा.

12 साल की पलक बोली," पापा आप मेरे लिए एक दुपट्टे वाला सूट लाना."

" मुझे किताबें पढ़नी हैं पापा. आप मेरे लिए फोटो वाली किताब लाना," 7 साल की महक ने भी अपनी फरमाइश रखी.

"अच्छा ले आऊंगा. अब बताओ मेरे पीछे में मम्मी को परेशान तो नहीं करोगे ?"

"नहीं पापा मैं तो काम में मम्मी की हैल्प करूंगी."

"मैं भी खूब सारी पेंटिंग बनाऊंगी. मम्मी को बिल्कुल तंग नहीं करूंगी. पापा मुझे भी ले चलो न, मुझे मुंबई देखना है," मचलते हुए महक ने कहा.

" चुप कर मुंबई बहुत दूर है. क्या करना है जा कर? अपने बनारस से अच्छा कुछ नहीं," पलक ने बहन को डांटा.

" नहीं मुझे तो पूरी दुनिया देखनी है," महक ने जिद की.

" ठीक है मेरी बच्ची. अभी तू छोटी है न. बड़ी होगी तो खुद से देख लेना दुनिया,” लोकनाथ ने प्यार से महक के सर पर हाथ फिराते हुए कहा.

पलक और महक दोनों एक ही मां की कोख से पैदा हुई थीं मगर उन की सोच, जीवन को देखने का नजरिया और स्वभाव में जमीन आसमान का फर्क था. बड़ी बहन पलक जहां बेहद घरेलू और बातूनी थी और जो भी मिल गया उसी में संतुष्ट रहने वाली लड़की थी तो वहीं महक को नईनई बातें जानने का शौक था. वह कम बोलती और ज्यादा समझती थी.

पलक को बचपन से ही घर के काम करने पसंद थे. वह 6 साल की उम्र में मां की साड़ी लपेट कर किचन में घुस जाती और कलछी चलाती हुई कहती," देखो छोटी मम्मी खाना बना रही है."

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