सवाल-
मैं 53 वर्षीय सिंगल मदर हूं. मेरे दोनों घुटनों में बहुत दर्द रहता है. मैं जानना चाहती हूं कि बिना सर्जरी के क्या घुटनों के दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है?
जवाब-
घुटनों में दर्द, कड़ापन और मूवमैंट प्रभावित होने के कारण जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है लेकिन कई लोग लंबे समय तक इन परेशानियों को सहते रहते हैं. उन्हें लगता है कि इन सब से छुटकारा पाने का केवल एक ही विकल्प है, नी रिप्लेसमैंट सर्जरी. लेकिन यह जानना जरूरी है कि सर्जरी एकमात्र और अंतिम विकल्प नहीं है. कई नौन सर्जिकल उपचार भी उपलब्ध हैं, जैसे फिजियोथेरैपी, दवाइयां, इन्जैक्शन, नए बायलौजिकल उपचार, जिन में ह्यालुरोनिक इंजेक्शन और पीआरपी जैसे प्राकृतिक उपचार भी शामिल हैं. सर्जरी का विकल्प तब चुना जाता है जब नौनसर्जिकल उपचारों से मरीज को आराम नहीं मिलता है.
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डॉक्टर अतुल मिश्रा, फोर्टिस अस्पताल, नोएडा
कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान गठिया के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है. सामान्य दिनों की तुलना में लॉकडाउन के दौरान महिलाओं को घुटने के दर्द से अधिक समस्या हुई है.
घुटनों और जोड़ों के दर्द के कारण उन्हें चलनेफिरने और खासतौर पर सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत होती है. घुटनों में दर्द का मुख्य कारण गठिया है और इसके लिए उठनेबैठने का तौर तरीका भी काफी हद तक जिम्मेदार है. नियमित जीवन में छोटीछोटी चीजें घुटने का दर्द दे सकती हैं.
भारत के लोगों में घुटने मोड़ कर और पालथी मार कर बैठने की अक्सर आदत होती है. सामूहिक भोजन करना हो, घर के कामकाज करने हो या आपस में बातें करनी हों-इन सभी कामों में महिलाएं घुटने मोड़ कर ही बैठती है. यहां तक कि भारतीय शैली के शौचालय में भी घुटने के बल बैठना पड़ता है. बैठने की यह शैली हमारी आदतों में शुमार हो गई है और इस आदत के कारण यहां लोग कुर्सी, सोफे या पलंग पर भी घुटने मोड़ कर बैठना पसंद करते हैं. बैठने के इस तरीके में घुटने पर दबाव पड़ता है जिससे कम उम्र में ही घुटने खराब होने की आशंका बढ़ती है. हालांकि इस के असर तुरंत नहीं दिखते लेकिन उम्र बढ़ जाने पर घुटने की समस्या हो जाती है.”