हम युवाओं के सामने अँधेरा ही अँधेरा है ऐसा लगता है मानों हम किसी चक्रव्यूह में फंस गए हैं, भोपाल की 26 वर्षीय सोनिया व्यास जो कि ग्रेज्युएशन करने के बाद एमपीपीएससी की तैयारी कर रही हैं हताश लेकिन दार्शनिक भाव से कहती हैं , एक मैं ही नहीं बल्कि पूरी एक पीढ़ी अपने भविष्य और केरियर को लेकर दुविधा में है कि अब हमारा क्या होगा . अभी तो हमने जिन्दगी जीना शुरू ही किया है कि मौत सिरहाने आ खड़ी हुई है .

भोपाल के ही रचनानगर में रहने बाले 24 वर्षीय प्रतीक शुक्ला 2 साल पहले तक एक प्राइवेट कम्पनी में जॉब कर रहे थे . कोरोना की पहली ही लहर ने उनसे न केवल नौकरी छीनकर उन्हें बेरोजगार कर दिया बल्कि माँ को भी छीन लिया . अब प्रतीक को कुछ नहीं सूझता वह ख़ामोशी से वक्त काट रहे हैं और कोरोना की भयावहता को ख़ामोशी से देख रहे हैं जो अभी खासतौर से युवाओं को और न जाने क्या क्या दिखाएगी और सिखाएगी भी . प्रतीक अब भविष्य की चिंता नहीं करते बल्कि थकी सी आवाज में कहते हैं जो होगा देखा जाएगा .

एक पत्रकारिता महाविद्धालय से जर्नलिज्म का कोर्स कर रहे मोहम्मद साद पछता रहे हैं कि उन्होंने गलत केरियर चुन लिया . साद को अब पत्रकारिता में कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा क्योंकि थोक में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया घरानों से छटनी हो रही है और उसकी अधिकतर गाज युवाओं पर ही गिर रही है क्योंकि वे नातजुर्बेकार होते हैं .साद को ऐसा लगता भी नहीं कि हालात जल्द सुधरेंगे . पढ़ाई के आखिरी साल में उन्हें महसूस हो रहा है कि डिग्री लेने के बाद कहीं किसी कार्नर पर फ़ास्ट फ़ूड की दुकान खोल लेना ज्यादा बेहतर होगा .

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