महामारी और स्लोडाउन के कारण कामकाजी महिलाओं की संख्या लगातार घट रही है. अध्ययनों के मुताबिक वैसे भी हमारे देश में काम करने वाली महिलाओं की संख्या काफी कम है. भारत में काम करने की उम्र वाले 67% पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या केवल 9% है.
आजादी के 74 साल से अधिक बीत जाने के बावजूद रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है खासकर युवा महिलाओं को अपने कैरियर के रास्ते में बहुत बाधाओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. उन के लिए रोजगार के क्षेत्र में जैंडर गैप की स्थिति आज भी वैसी ही है जैसे 1950 के शुरुआत में थी.
भले ही महिलाओं ने कितनी भी टैक्निकल या वोकेशनल ट्रेनिंग ले ली हो उन्हें वर्कप्लेस में लैंगिक असमानता का दंश आज भी भोगना पड़ रहा है. आज भी उन के हिस्से कम वेतन वाली नौकरियां ही आती हैं.
महामारी की मार कामकाजी महिलाओं पर
आजकल अच्छी फौर्मल नौकरियां, जिन में कैरियर बनाने के अच्छे मौके मिलते हैं, घट रही हैं. कौंट्रैक्ट पर आधारित जौब ज्यादा है. सीएमआईई के एक अध्ययन के मुताबिक कामकाजी महिलाओं के लिए यह काफी कठिन समय है.
महामारी की वजह से बाजार में वैसे ही जौब कम हैं. वर्किंग ऐज की 11% महिलाओं के मुकाबले 71% पुरुष जौब कर रहे हैं. इस के बावजूद महिलाओं में बेरोजगारी दर 17% है जबकि पुरुषों में इस के मुकाबले काफी कम यानी 6% ही है. मतलब बहुत थोड़ी सी महिलाएं हैं जो नौकरी ढूंढ रही हैं और उन के लिए भी पुरुषों के मुकाबले नौकरी पाना बहुत कठिन है. ऐसी स्थिति रोजगार के क्षेत्र में महिलाओं के प्रति भेदभाव की वजह से है.
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