हमारे शरीर की बहुत सी बीमारियों की जड़ हमारा पेट यानी डाइजैस्टिव सिस्टम है. अगर यह सही तरीके से काम न करे तो तरहतरह की बीमारियां जैसे कब्ज, गैस, मोटापा, मधुमेह, कोलैस्ट्रौल जैसी बहुत सी परेशानियां उत्पन्न हो जाती हैं. दरअसल, आंतों में मौजूद बैक्टीरिया हमारे शरीर में पाचनक्रिया बढ़ाने, रोगप्रतिरोधक प्रणाली को मजबूत करने व हमें स्वस्थ रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
स्टमक में अनहैल्दी और हैल्दी माइक्रोब्स के असंतुलन से हमारा स्वास्थ्य खराब हो जाता है. स्टमक में गुड बैक्टीरिया का अनुपात घट जाए तो हैल्दी भोजन लेने के बावजूद शरीर को पोषक तत्त्व नहीं मिल पाते और हम बीमार रहने लगते हैं.
इस संदर्भ में मैक्स सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, साकेत की डाइटीशियन रितिका समद्दर कहती हैं कि हमारा 70 से 80% तक इम्यून सिस्टम गट यानी हमारे डाइजैस्टिव सिस्टम में लोकेटेड होता है. इस गट को हैल्दी रखने के लिए हमें गट माइक्रोबायोम चाहिए, जिसे माइक्रोगेनिज्म के नाम से भी जाना जाता है.
ये 2 तरह के होते हैं- एक हमारे गुड बैक्टीरिया जिन्हें हम प्रोबायोटिक के नाम से जानते हैं, प्रोबायोटिक लाइव बैक्टीरिया होते हैं जो हमारे डाइजैस्टिव सिस्टम में होते हैं. इन्हें हम डाइरैक्टली अपनी डाइट में ले सकते हैं जैसे जब हम दही लेते हैं, योगर्ट खाते हैं या कोई और फर्मैंटेड फूड लेते हैं तो उस में प्रोबायोटिक होते हैं.
अपने गट को हैल्दी रखने का दूसरा तरीका है प्रोबायोटिक लेना. ये नोन डाइजैस्टिव कार्बोहाइड्रेट होता हैं. जब हम इसे खाते हैं तो यह एक गुड ऐन्वायरन्मैंट बनाता है, जिस से गुड बैक्टीरिया बन सकते हैं. जैसे केला, प्याज, शहद, कुछ हरी सब्जियां, जिन्हें हम प्रोबायोटिक के नाम से जानते हैं.
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