लिवर यानि यकृत हमारे शरीर का प्रमुख अंग है, जो पोषक तत्वों को पूरे शरीर में प्रोसेस करने के साथ-साथ खून को फ़िल्टर करता है. इन्फेक्शन्स के खिलाफ लड़ता है. वायरल हेपेटाइटिस में हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी और ई वायरस जब लिवर को संक्रमित करते है, तो लिवर में सूजन आ जाती है. इस बारें में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल की एचपीबी(Hepato-Pancreatico-Biliary) एंड लिवर ट्रांसप्लांट की डॉ. कांचन मोटवानी कहती है कि वायरल हेपेटाइटिस के वायरस लिवर को नुकसान पहुंचाकर उसके कार्य को प्रभावित करती है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर में टॉक्सिन्स का निर्माण होने की संभावना बढती है. इससे लिवर सिरोसिस या लिवर कैंसर भी हो सकता है.

यकृत के रिस्क फैक्टर

हेपेटाइटिस ए और ई वायरस के संक्रमण से क्रोनिक वायरल हेपेटाइटिस हो सकता है. कई मरीज़ों में, यह कुछ हफ्तों या महीनों में अपने आप ठीक हो जाता है, लेकिन कुछ दुर्लभ मामलों में मरीज़ के लिवर का काम बहुत ही तेज़ी से बंद पड़ने लगता है, अगर लिवर ट्रांसप्लांट तुरंत न किया जाए, तो यह स्थिति जानलेवा भी हो सकती है।

हेपेटाइटिस बी और सी से लिवर का तीव्र नुकसान होने की केस शायद ही कभी होती होगी, लेकिन ये वायरस व्यक्ति के शरीर में बने रहते है और लंबे समय के बाद लीवर सिरोसिस और लीवर कैंसर का कारण बन जाते है.

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लक्षण

हेपेटाइटिस ए और ई आमतौर पर दूषित भोजन और पानी के ज़रिए मल या मौखिक मार्ग से फैलते है. अधिकतर ये बीमारियां गन्दगी वाले इलाकों में पायी जाती है. संक्रमित व्यक्ति में कई बार किसी प्रकार की लक्षण नहीं दिखाई पड़ती या किसी में पीलिया, पेट में दर्द, जी मिचलाना, उल्टी, भूख न लगना, बुखार, सामान्य कमजोरी आदि जैसे लक्षण दिखाई दे सकते है. ज़्यादातर मामलों में, ये लक्षण सपोर्टिव उपचार के साथ ठीक हो जाते है. अधिकांश मरीज़ों में, वायरस शरीर से निकल जाता है और मरीज़ पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है. बहुत कम प्रतिशत मामलों में, यह बीमारी अचानक से, तीव्र लिवर फेलियर का कारण बनती है, ऐसे मरीज़ों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है. बहुत कम केसेज में, किसी मरीज को आपातकालीन लिवर ट्रांसप्लांट की ज़रूरत हो सकती है.

हेपेटाइटिस बी और सी संक्रमित रक्त और रक्त के प्रोडक्ट्स से फैलते है. यह संक्रमित गर्भवती महिला से बच्चे के जन्म के दौरान नवजात बच्चे में भी फैल सकता है. शुरू में रोगियों में कोई लक्षण नहीं होता या बहुत अस्पष्ट लक्षण होता है, लेकिन इसके वायरस खून में बना रहता है और धीरे-धीरे लीवर को नुकसान पहुंचाता है. क्रोनिक हेपेटाइटिस से सिरोसिस, लीवर फेलियर और लीवर कैंसर जैसी जटिलताएं हो सकती है.

रोकथाम

वायरल हेपेटाइटिस से खुद को बचाने के सबसे असरदार तरीकें निम्न है,

• सूचना और जागरूकता फैलाना,
• पीने का शुद्ध पानी होना, शौचालय, घर और आसपड़ोस के इलाके को स्वच्छ रखना,
• सभी का टीकाकरण होना,
• रक्त और रक्त उत्पादों की सुरक्षा
• असुरक्षित यौन संबंध न करना आदि है.

इलाज

• एक्यूट हेपेटाइटिस में आराम करें, बहुत सारे तरल पदार्थ पिएं और हेल्दी भोजन लें. सपोर्टिव दवाएं इन लक्षणों से आराम दिलाने में मदद कर सकती है.

• डॉक्टर की सलाह या पर्चे के बिना दवाइयां न लें, अल्टरनेटिव दवाइयों के सेवन से बचें, ये लीवर को और अधिक नुकसान पहुंचा सकती है.

• क्रोनिक हेपेटाइटिस (हेपेटाइटिस बी और सी) में, अधिक कॉम्प्लीकेशन को रोकने के लिए जल्दी जांच और उपचार लेना जरुरी है. वायरल हेपेटाइटिस का निदान अगर रोगाणु द्वारा लिवर को प्रभावित करने से पहले किया जाता है, तो उसे ठीक करने के लिए प्रभावी दवाइयां उपलब्ध है. कुछ मामलों में, यदि क्रोनिक बीमारी से लिवर पहले ही डैमेज हो चुका है, तो लिवर ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ सकती है.

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