आगरा की रहने वाली चुलबुली और हंसमुख अभिनेत्री आशी को बेटे और बेटी में फर्क कभी अच्छा नहीं लगा, जबकि उसके परिवार में ऐसा नहीं था, पर रिश्तेदारों और आसपास के माहौल में उन्होंने कहते हुए सुना है, बेटी है… अधिक पढ़ा लिखाकर क्या करोगे? शादी ही तो करनी है… गोल रोटी बनानी आती है क्या?जबकि बेटे के लिए सबकी सोच अच्छी पढाई कर कमाने की है. बेटी आखिर कब तक इसे सहेगी, 21वीं सदी में भी सोच क्यों नहीं बदलती? इसी सोच के साथ 24 वर्षीय आशी ने जी टीवी की शो ‘मीत’ में एक टॉम बॉय की भूमिका निभाकर परिवार, समाज और धर्म को सबक सिखाने और लोगों के बीच जागरूकता फ़ैलाने की कोशिश की है.

धारावाहिक ‘ये उन दिनों की बात है और अलादीन- नाम तो सुना होगा आदि से चर्चित अभिनेत्री आशी सिंह को बचपन से अभिनय की इच्छा थी, लेकिन ये कैसे होगा, जानती नहीं थी. इसलिए जहाँ भी उसे मॉडलिंग का मौका मिलता, वह करती जाती थी, इससे उसकी अभिनय प्रतिभा में विकास हुआ और आज एक टीवी शो को लीड कर रही है. उनसे फ़ोन पर बात हुई, आइये जाने कुछ बातें आशी सिंह की जर्नी के बारें में.

सवाल- इस भूमिका को करने की खास वजह क्या है?

इस शो में मैं एक ऐसी लड़की की भूमिका निभा रही हूं, जो लड़की की तरह दिखती है, पर लड़कियों जैसी काम नहीं करती. वह घर और बाहर दोनों जगह काम करती रहती है. इस चरित्र में काफी सारे शेड्स है, जो बहुत अलग, आत्मविश्वास से भरी हुई और चुनौतीपूर्ण है. मुझे इसकी कहानी पसंद आई और मैने हाँ कह दी.

सवाल- इस चरित्र से आप खुद को कितना जोड़ पाती है?

मैं लडको की तरह ड्रेस पहनना और छोटे बाल रखना पसंद नहीं करती. मेरे केश बड़े है और कपडे भी मैं रियल लाइफ में लड़कियों की तरह ही पहनना पसंद है. यहाँ मेरे छोटे केश होने की वजह अलग है, मीत अपने केश हमेशा छोटी रखती है, ताकि केश बनाने में फिजूल टाइम जाता है. बाइक चलाने के लिए जींस और टी शर्ट में आसानी रहती है, इसलिए उसे पहनती है. असल जिंदगी में भी आशी को ऐसी ड्रेस पहनना पसंद है. मैंने बचपन में कई लड़कियों को कहते हुए सुना है कि लड़की होने की वजह से वे खुलकर जी नहीं सकती. मुझे ऐसा महसूस कभी घर वालों के साथ नहीं हुआ, क्योंकि मैं जो कुछ भी करना चाहती हूं, करने की मुझे आज़ादी है.

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सवाल- हमारे समाज और परिवार में लिंग भेद आज भी है, क्या आपने अपने आसपास कभी कुछ देखा है?

मेरे परिवार में मुझे और भाई को पेरेंट्स ने कभी अलग नहीं समझा. मैंने कभी खुद लड़की होने की वजह से अलग महसूस भी नहीं किया, लेकिन मेरी दादी घर में एक लड़के का होना जरुरी समझती है. वे लडको को घर का चिराग मानती है. अब ये सोच वक्त के साथ बदलने की जरुरत है, पर ऐसा नहीं हुआ है. काफी लोगों को मैंने आसपास देखा है, जो बेटा होने को जरुरी मानते है, क्योंकि बेटा बाहर काम कर सकता है और बेटे के बिना परिवार कम्पलीट नहीं होता. लड़कियों को सिर्फ घर का काम आना चाहिए, क्योंकि उन्हें ससुराल जाना है. पढ़-लिख कर उन्हें जॉब तो करना नहीं है. मैं उत्तरप्रदेश से हूं, इसलिए वहां लोग लड़कियों के लिए ऐसी ही विचारधारा रखते है.

सवाल- परिवार में लड़कियों को सम्मान नहीं मिलता, लेकिन एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में भी ऐसी असामनता उनकी फीस को लेकर दिखाई दिखाई पड़ती है, क्या आपको कभी ऐसी चीजों का सामना करना पड़ा?

मैंने बहुतों से सुना है कि इंडस्ट्री में ऐसा होता है, पर मुझे कभी ऐसा अनुभव नहीं हुआ. मैं अपने काम के अनुसार पेमेंट मांगती हूं. एक्टर को कितना मिलता है, इस बारें में मैंने कभी पता करने की कोशिश नहीं की है. एक्टर की फीस मुझसे अधिक हो सकता है या कम भी हो सकता है, क्योंकि अभिनेत्रियों के होने पर ही शो आकर्षक लगता है. मेरे हिसाब से अभिनेता और अभिनेत्रियों की फीस बराबर होनी चाहिए, लेकिन इन सब बातों के बारें में मैं अधिक नहीं सोचती, क्योंकि इससे मेरा परफोर्मेंस सही नहीं होगा.

सवाल- आगरा से मुंबई कैसे आना हुआ?

मैंने 17 साल की उम्र से अभिनय करना शुरू किया है. स्कूल के नाटकों में मैने हमेशा भाग लिया है, लेकिन एक समय लगता था कि यहाँ रहने से मेरी प्रतिभा को मौका नहीं मिलेगा. संयोग से मेरे पिता का काम मुंबई में सेटल होने की वजह से हम सब मुंबई आ गये. तब मैं 9 वीं कक्षा में थी. पढाई शुरू की और उस दौरान पिता की एक दोस्त के समझाने पर मेरे पिता ने एक्टिंग में डिप्लोमा कराया. इसके बाद मैंने हर प्रोडक्शन हाउस में अपनी पिक्चर दी और ऑडिशन देती रही. मैंने बहुत सारे ऑडिशन दिए. इसके बाद मुझे धारावाहिक ‘उन दिनों की बात है’ में काम मिला.

सवाल- क्या आगरा से मुंबई आने पर खुद को मुंबई की माहौल में एडजस्ट करना मुश्किल लगा?

मुझे बचपन से अभिनय का शौक था, इसलिए आगरा में अच्छी-अच्छी फोटो खिचावाकर मुंबई की प्रोडक्शन हाउस में भेजती थी. मैं यहाँ आने पर बहुत एक्साइटेड थी, क्योंकि यह सपनों की नगरी है और मेरा सपना सच होने का रास्ता भी यही पर है. इसलिए मुझे एडजस्ट करने में अधिक मुश्किल नहीं हुई. आगरा से यहाँ सब अलग होगा, ये मुझे पता था, क्योंकि वहां मुझे सब जानते थे, पर यहाँ कोई नहीं जानता. कठिन बहुत था, लेकिन मेहनत और धीरज से मुझे अभिनय का मौका मिला.

सवाल- कितना संघर्ष रहा?

मैंने 6 महीने का एक्टिंग डिप्लोमा किया. इसके बाद ढाई साल मैंने ऑडिशन दिए है, जिसमे हर दिन 4 से 5 ऑडिशन धूप और बारिश की परवाह किये बिना दिए है. मैं हमेशा अपने परिवार के साथ रही, लेकिन एक्टिंग की जर्नी मैंने अकेले ही तय की है. मुझे याद है, एक दिन मुझे शूट के लिए दूसरी जगह लोकल ट्रेन से जाना था, स्टेशन पहुंचकर मुझे पता नहीं था कि मुझे टिकट कहाँ से लेना है, मैं वहां खड़ी होकर रोने लगी थी. फिर मैंने पूछ-पूछकर शूटिंग स्पॉट पर पहुँच गयी थी, ऐसा कई बार हुआ, क्योंकि मुझे मुंबई के बारें में कुछ भी पता नहीं था. संघर्ष थी, पर अकेले इसे तय करने की संतुष्टि भी रही.

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सवाल- आपकी ड्रीम क्या है?

मेरा ड्रीम हमेशा एक कलाकार बनने की थी और मैंने धारावाहिकों में जिस तरह की भूमिका निभाई है, सभी फिल्मों की तुलना में काफी अच्छी भूमिका थी. मैं अपने काम से बहुत संतुष्ट हूं और मैं अपने सपने को ही जी रही हूं. मैं हमेशा अच्छी और नई भूमिका में काम कर दर्शकों को खुश करना चाहती हूं.

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