सारा आज खुशी से झूम रही थी. खुश हो भी क्यों ना, पुणे की एक बहुत बड़ी फर्म में उस की नौकरी लग गई थी. अपनी गोलगोल आंखें घुमाते हुये वह अपनी मम्मी से बोली, "मैं ना कहती थी कि मेरी उड़ान कोई नहीं रोक सकता. पापा ने पढ़ने के लिए मुझे मुजफ्फरनगर से बाहर नहीं जाने दिया, पर अब इतनी अच्छी नौकरी मिली है कि वे मुझे रोक नहीं सकते हैं.

सारा 23 वर्ष की खूबसूरत नवयुवती, जिंदगी से भरपूर, गोरा रंग, गोलगोल आंखें, छोटी सी नाक और मोटे विलासी गुलाबी होंठ, होंठों के बीच काला तिल सारा को और अधिक आकर्षक बना देता था.

सारा को खुले आकाश में उड़ने का शौक था. वह अकेले रहना चाहती थी और जीवन को अपने तरीके से जीना चाहती थी.

जब भी सारा के पापा कहते कि हमें तुम से जिंदगी का अधिक अनुभव है, इसलिए हमारा कहा मानो.

सारा फट से कहती, "पापा, मैं अपने अनुभवों से कुछ सीखना चाहती हूं."

सारा के पापा उसे पुणे भेजना नहीं चाहते थे, पर सारा की दलीलों के आगे उन की एक ना चली. फिर सारा की मम्मी ने भी समझाया कि इतनी अच्छी नौकरी है. आजकल अच्छी नौकरी वाली लड़कियों की शादी आराम से हो जाती है.

सारा के पापा ने फिर हथियार डाल दिए थे. ढेर सारी नसीहतें और अपने परिवार की इज्जत का दारोमदार सारा के हाथों में सौंप कर सारा के पापा वापस मुजफ्फरनगर आ गए थे.

सारा को शुरुआत में थोड़ी दिक्कत हुई थी, परंतु धीरेधीरे वह पुणे के लाइफ की अभ्यस्त हो गई थी. यहां पर मुजफ्फरनगर की तरह ना टोकाटाकी थी और ना ही ताकाझांकी.

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