आजकल हर क्षेत्र में ठगी का धंधा पूरे जोरशोर से चल रहा है. ऐसे में भला उपभोक्ता या शौपिंग करने वाले इस ठगी का शिकार होने से कैसे बच सकते हैं. दुकानदारों व व्यापारियों द्वारा लोगों को खराब सामग्री बेचना, विज्ञापनों की आड़ में ठगना, वस्तु की गुणवत्ता में कमी का पाया जाना व तय कीमत से ज्यादा कीमत मेंवस्तु बेचना आदि कई तरह से आप को बेवकूफ बनाया जा सकता है.

उपभोक्ता के अधिकार

स्मार्ट शौपर वह है, जिसे अपने अधिकारों की पूर्ण जानकारी है और जो किसी भी तरह से दुकानदार द्वारा ठगा नहीं जा सकता. इसलिए आप को अपने उपभोक्ता अधिकारों की पूरी जानकारी होनी चाहिए. पर अधिकारों से महत्त्वपूर्ण कुछ बातों के प्रति सावधानी बरतना भी जरूरी है, जैसे:

कोई भी वस्तु खरीदते समय मूल्य के साथसाथ गुणवत्ता पर भी ध्यान दें.

पैकेट में ली जाने वाली वस्तुओं को खरीदते समय पैकेट पर लिखे विवरण, निर्माण तिथि, उपयोग की सीमा अवधि, अधिकतम मूल्य आदि को ध्यान से पढ़ लें.

खरीदी गई वस्तुओं की रसीद अवश्य लें.

यदि सामान के साथ गारंटी या वारंटी कार्ड की व्यवस्था है तो कार्ड पर दिनांक, वर्ष, हस्ताक्षर व मोहर लगवा कर ही वस्तु खरीदें.

सभी नियम व शर्तें ध्यान से पढ़ लें.

यदि किसी दुकान की रसीद या बिल पर लिखा हो कि बिका हुआ माल वापस नहीं होगा तो यह व्यापार आचार संहिता के खिलाफ है.

भारत में विभिन्न प्रकार के शोषण व ठगी से उपभोक्ताओं की रक्षा करने के लिए विभिन्न अधिनियम जैसे भारतीय दंड संहिता (1860), भारतीय संविदा अधिनियम (1872), खाद्य अपमिश्रण निवारण आवश्यक वस्तु अधिनियम (1955), चोरबाजारी निवारण प्रदाय अधिनियम, बाट और माप मानक अधिनियम (1985) जैसे कई अधिनियम ग्राहकों के हित में बनाए गए हैं. साथ ही ग्राहकों के पूर्ण संरक्षण व उन की शिकायत सुनने हेतु उपभोक्ता समन्वय परिषद और कंज्यूमर कोर्ट्स की व्यवस्था की गई है. जिला फोरम में 1 रुपए से ले कर 20 लाख रुपए तक के मामले निबटाए जाते हैं, स्टेट कमीशन में 20 लाख रुपए से ले कर 1 करोड़ रुपए तक के और नैशनल कमीशन में 1 करोड़ रुपए से ऊपर के मामलों पर कार्यवाही होती है.

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