लेखिका- डा. जया आनंद
सलोनी की शादी के लिए सब उस के पीछे पड़े थे कि समय से होनी चाहिए नहीं फिर अच्छा पति नहीं मिलेगा...
सलोनी ने सारे व्रतउपवास कर लिए. अब इंतजार था कि कोई राजकुमार आएगा और उसे घोड़े पर बैठा कर ले जाएगा और जिंदगी हो जाएगी सपने जैसी. प्रतीक्षा को विराम लगा. आ गए राजकुमार साहब घोड़े पर तो नहीं पर कार पर चढ़ कर आ गए.
हां तो शादी के पहले का हाल भी बताना जरूरी है. सगाई के बाद ही सलोनी को ये राजकुमार साहब लगे फोन करने. घंटो बतियाते, चिट्ठी भी लिखतेलिखाते. सलोनी के तो पौ बारह, पढ़ालिखा बांका जवान मुंडा जो मिल गया था... शादी धूमधाम से हुई. सलोनी की मुसकान रोके नहीं रुक रही थी.
राजकुमार साहब भी शुरुआत में हीरो की माफिक रोमांटिक थे पर पति बनते ही दिमाग चढ़ गया 7वें आसमान पर ‘मैं पति हूं.’ सलोनी भी भौचक्का कि इन महानुभाव को हुआ... क्या अभी तक तो बड़े सलीके से हंसतेमुसकराते थे जनाब, लेकिन पति बनते ही नाकभौं सिकोड़ कर बैठ गए. प्रेम के महल में हुक्म की इंतहा यह बात कुछ हजम नहीं हुई पर शादी की है तो हजम करनी ही पड़ेगी तो सलोनी ने अपना पूरा हाजमा ठीक किया.
मगर पति को यह कैसे बरदाश्त कि पत्नी का हाजमा सही हो रहा है कुछ तो करना पड़ेगा वरना पति बनने का क्या फायदा.
‘‘कपड़े क्यों नहीं फैलाए अभी तक... मशीन में सड़ जाएंगे,’’ पति महाशय ने अपना भोंपू फूंका.
सलोनी ने सहम कर कहा, ‘‘भूल गई थी.’’
‘‘कैसे भूल गई फेसबुक, व्हाट्सऐप, किताबें याद रहती हैं... यह कैसे भूल गई.’’