आजकल बहुत सा पैसा टैक्नोलौजी से चल रही पढ़ाई में लगाया जा रहा है और इस का अर्थ है कि सीमेंट और ईंटों से बने स्कूलकालेजों में 40-50 साल पहले तय की गई शिक्षा अब अपना मतलब खोती जा रही है. जैसे फैक्टरियों में मजदूरों को नई टैक्नोलौजी बुरी तरह निकाल रही है, उसी तरह टैक्नोलौजी न जानने वाले युवाओं का भविष्य और ज्यादा धूमिल होता जा रहा है.
जिस तरह का पैसा बैजू जैसी कंपनियों में लग रहा है उस से साफ है कि कंप्यूटर पर बैठ कर ऊंची शिक्षा पाने वाले ही अब देशदुनिया में छा जाएंगे पर यह शिक्षा बहुत महंगी है और साधारण घर इसे अफोर्ड भी नहीं कर पाएंगे.
अमेरिका में किए गए एक सर्वे में पाया गया कि 30 हजार डौलर (लगभग क्व18 लाख) कमाने वाले परिवारों में से 64% के पास स्मार्ट फोन, 1 से ज्यादा कंप्यूटर, वाईफाई, ब्रौडबैंड कनैक्शन, स्मार्ट टीवी हैं जबकि 30 हजार डौलर से कम कमाने वाले घरों में 16% के पास ही ये सुविधाएं हैं.
इस का अर्थ है कि गरीब मांबाप के बच्चे गरीबी में ही रहने को मजबूर रहेंगे क्योंकि न तो वे महंगे स्कूलकालेजों में जा पाएंगे और न ही महंगी चीजें खरीद पाएंगे.
आज हाल यह है कि पिछले सालों में कम तकनीक जानने वालों के वेतनों में 2-3% की वृद्धि हुई है जबकि ऊंची तकनीक जानने वालों का वेतन 20-25% बढ़़ा है.
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भारत में यह स्थिति और ज्यादा उग्र हो रही है क्योंकि यहां भेदभाव को जन्म व जाति से भी जोड़ा हुआ है. यहां जिस तरह पूरे रोज के विज्ञापन कोचिंग क्लास चलाने वाले अखबारों में लेते हैं, उस से साफ है कि नौनटैक्नोलौजी शिक्षा भी महंगी हो गई है और टैक्नोलौजी की शिक्षा तो न जाने कहां से कहां जाएगी.
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