लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
“अब जाने दो मुझे... रातभर प्यार करने के बाद भी तुम्हारा मन नहीं भरा क्या?” शुभी ने नखरे दिखाते हुए कहा, तो विजय अरोड़ा ने उस का हाथ पकड़ कर फिर से उसे बिस्तर पर गिरा दिया और उस के ऊपर लेट कर पतले और रसीले अधरों का रसपान करने लगा.
“देखो... मैं तो मांस का शौकीन हूं... फिर चाहे वह मेरी खाने की प्लेट में हो या मेरे बिस्तर पर,” विजय अरोड़ा शुभी के सीने के बीच अपने चेहरे को रगड़ने लगा, दोनों ही एकसाथ शारीरिक सुख पाने की चाह में होड़ लगाने लगे और कुछ देर बाद एकदूसरे से हांफते हुए अलग हो गए.
विजय और शुभी की 18 और 20 साल की 2 बेटियां थीं, तो दूसरी तरफ विजय के बड़े भाई अजय अरोड़ा के एक बेटा था, जिस की उम्र 22 साल की थी.
अरोड़ा बंधुओं के पिता रामचंद अरोड़ा चाहते थे कि जो बिजनैस उन्होंने इतनी मेहनत से खड़ा किया है, उस का बंटवारा न करना पड़े, इसलिए वे हमेशा दोनों भाइयों को एकसाथ रहने और काम करने की सलाह देते थे, पर छोटी बहू शुभी को हमेशा लगता रहता था कि पिताजी के दिल में बड़े भाई और भाभी के लिए अधिक स्नेह है, क्योंकि उन के एक बेटा है और उस के सिर्फ बेटियां.
शुभी को यही लगता था कि वे निश्चित रूप से अपनी वसीयत में दौलत का एक बड़ा हिस्सा उस के जेठ के नाम कर जाएंगे.
‘‘भाई साहब देखिए... विजय तो कामधंधे में कोई सक्रियता नहीं दिखाते हैं, पर मुझे अपनी बेटियों को तो आगे बढ़ाना ही है, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप मेरी बेटियों को भी अपने बिजनैस में हिस्सा दें और काम के गुर सिखाते रहें,‘‘ शुभी ने अपने जेठ अजय अरोड़ा से कहा.
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