मुग्धा ने बेचैनी से घड़ी की ओर देखा. अरे, साढ़े 6 बज गए. अभी तक अखबार नहीं आया. आमतौर पर तो 6 बजतेबजते ही आ जाया करता है वह छोकरा. आज ही के दिन देर, उफ. बालकनी से सामने की मेन रोड दोनों ओर दूर तक दिखाई पड़ती थी. मुग्धा ने गरदन ऊंची कर के रोड के दोनों ओर निहारा. उस को अखबार देने वाला हौकर, जो लगभग 17-18 साल का नई उम्र का लड़का था, साइकिल पर अखबार लादे हुए आता दिखाई दिया.
यों तो मुग्धा को अखबार का इंतजार रोज ही बेचैनी से रहा करता पर इतवार वाले अखबार का इंतजार एक किस्म की सनक में बदल जाता. इतवार को वह 6 बजे ही बालकनी में आ बैठती. उस दिन अखबार के लिए इंतजार के वे कुछ पल ठीक उसी तरह बेसब्री से बीतते, जिस तरह किसी प्रियतमा के अपने प्रियतम के इंतजार में बीतते हैं.
दरअसल, इस अखबार के रविवारीय अंक में साप्ताहिक राशिफल का विस्तार से विवरण प्रकाशित होता था. हर राशि के सातों दिनों के भविष्यफल की विस्तृत व्याख्या उस में छपती थी. व्याख्या के लिए पूरे 2 पृष्ठ निर्धारित रहते. व्याख्याकार थे शहर के जानेमाने ज्योतिषाचार्य डा. अनिल नारियलवाला, जिन के बारे में किंवदंती थी कि उन की भविष्यवाणी कभी भी गलत नहीं होती. बात बिलकुल सही भी थी. मुग्धा को इस बात का एहसास कई बार हो चुका था. उसे डा. नारियलवाला के विश्लेषण पर पूरी आस्था रहती.
मुग्धा स्थानीय गर्ल्स कालेज में राजनीति विज्ञान की व्याख्याता थी. मार्क्स, लेनिन, एंजिल्स वगैरह के साहित्य का खूब अध्ययन किया था. मार्क्स का भौतिक द्वंद्ववाद और वर्ग संघर्ष का सिद्धांत वर्तमान आर्थिक परिप्रेक्ष्य में उसे सर्वाधिक तार्किक सिद्धांत लगता. वह प्रगतिशील विचारधारा की पोषक थी. स्त्री विमर्श और स्वाधीनता, दलित विमर्श और आरक्षण जैसे मुद्दों पर वह ओजपूर्ण वक्तव्य दे सकती थी. इन सब के बावजूद मन ही मन परंपरावादी भी थी.
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