सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि अगर कोई अविवाहित युगल साथ रह रहा हो तो उन्हें विवाहित ही माना जाएगा और जो उन के विवाह को चुनौती दे उसे यह साबित करना होगा कि उन का विवाह नहीं हुआ. सर्वोच्च न्यायालय एक ऐसे मामले में यह फैसला दे रहा था, जिस में पोतों ने दादा के साथ 20 साल रही औरत के अविवाहित होने का दावा कर दादा की संपत्ति पर उस के हक को इनकार करने की कोशिश की थी. हालांकि वह औरत यह सुबूत नहीं जमा कर पाई थी कि उस का विवाह कब और कैसे हुआ था पर पोते भी यह सुबूत न जुटा पाए कि दादा ने उसे रखैल की तरह रखा था, पत्नी की तरह नहीं. पिछले कई सालों से सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णयों में यह स्पष्ट कहा है कि विवाह के लिए साथ रहना ही काफी है, रस्मों से विवाह करना अति आवश्यक नहीं है. ऐसे में यदि एक की मृत्यु हो जाए तो दूसरे को संपत्ति में हिस्सा मिलेगा ही.

यह फैसला जहां तर्कसंगत है, वहीं परेशान करने वाला भी. अगर पतिपत्नी की तरह रहते जोड़े को पतिपत्नी मान लिया जाएगा, तो औरत का कानूनी पति यदि कहीं और हुआ तो उस का क्या होगा? अगर औरत के किसी और से बच्चे हुए तो उन का क्या होगा? क्या साथ रहता पुरुष इन बच्चों का सौतेला पिता माना जाएगा? विवाह असल में समाज का दिया गया कानूनीजामा है, जो आदमी और औरत को एकदूसरे पर और उन से पैदा होने वाले बच्चों को दोनों पर कुछ हक दिलाता है. ये हक ज्यादातर संपत्ति के होते हैं पर अब इन में गुजाराभत्ता का हक भी शामिल हो गया है. ये हक क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 125 से निकलते हैं. इस कानून के अनुसार साथ रहती अवैध पत्नी को भी गुजाराभत्ता मिल सकता है और बच्चों को भी.

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