लेखिका- संध्या शर्मा

मेरेसहयोगी नरेश ने अपनी प्रमोशन की खुशी में औफिस के सब लोगों को लंच पार्टी में बुलाया था. वहां से लौटते हुए मुझे एकाएक एहसास हुआ कि श्वेता का मूड खराब है.

‘‘तुम ने क्यों मुंह सुजाया हुआ है? क्या पार्टी में किसी से कुछ कहासुनी हो गई है?’’ मैं ने चिंतित लहजे में पूछा.

‘‘नहीं,’’ उस का इनकार करने का खिंचावभरा तरीका इस बात की पुष्टि कर गया कि जरूर पार्टी के दौरान कुछ ऐसा गलत घटा है जो उसे परेशान कर रहा है.

श्वेता की आदत है कि वह हमेशा अपने मन की बात देरसबेर मुझे बता देती है. इसलिए मैं उसी वक्त सबकुछ जानने के लिए उस के पीछे नहीं पड़ा है.

हुआ भी कुछ ऐसा ही. जब घर पहुंच कर मैं ने ड्राइंगरूम में उसे बांहों में भरने की कोशिश करी तो उस ने मेरे हाथ झटक दिए.

‘‘क्या आज मुझ से जोरजबरदस्ती कराने के मूड में हो?’’ मैं ने हंसते हुए पूछा पर वह रत्तीभर नहीं मुसकराई.

कुछ पलों तक उस ने मुझे नाराजगी से घूरा और फिर गुस्से से पूछा, ‘‘औफिस वाली बालकटी नीरजा के साथ आजकल तुम्हारा क्या चक्कर चल रहा है?’’

‘‘ओह, तो पार्र्टी में किसी ने नीरजा को ले कर तुम्हारे कान भरे हैं. भई, मेरा उस के साथ कोई चक्कर नहीं…’’

‘‘मुझ से झठ बोलने की कोशिश मत करिए,’’ वह शेरनी की तरह गुर्रा उठी.

‘‘तो फिर मैं तुम्हें कैसे विश्वास दिलाऊं कि हम दोनों सहयोगी होने के साथसाथ अच्छे दोस्त भी हैं और हमारे बीच कोई इश्क नहीं चल रहा है?’’ मेरे लिए अपनी हंसी रोकना मुश्किल हो रहा है, यह बात उसे बिलकुल समझ नहीं आ रही थी.

‘‘मैं आज तुम्हारी किसी झठी बात पर विश्वास नहीं करूंगी. हंसना बंद कर के आप मेरे सवालों के सीधेसीधे जवाब दो.’’

‘‘पूछो, मेरी झंसी की रानी,’’ मैं बड़े स्टाइल से उस के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया पर उस ने तो जैसे न मुसकराने का पक्का फैसला कर रखा था.

‘‘वह जिस फ्लैट में अकेली रहती है,

आप उस से मिलने वहां जाते रहते हो न?’’

‘‘कभीकभी.’’

‘‘उस के साथ होटल में खाना खाने

जाते हो?’’

‘‘बहुत बार गया हूं.’’

‘‘वह शराब पीती है न?’’

‘‘हां अकसर वाइन पीती है.’’

‘‘अब मुझे यह बताओ कि मैं कैसे विश्वास कर लूं कि इस शराब पीने वाली व होटलों में तुम्हारे साथ घूमने वाली चालू औरत के साथ तुम्हारा कोई चक्कर नहीं चल रहा है?’’ उस ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘तुम्हें विश्वास करना ही चाहिए क्योंकि तुम्हारे पतिपरमेश्वर ऐसा कह रहे हैं.’’

‘‘भाड़ में गए पतिपरमेश्वर. देखो या तो तुम इसी वक्त मेरे सिर पर हाथ रख कर

सच बताओ कि आज के बाद औफिस के अलावा उस चुड़ैल से कहीं नहीं मिलोगे या फिर मुझे इसी वक्त मायके छोड़ आओ.’’

‘‘अपनी जबान से किसी के लिए अपशब्द मत  निकालो.’’

‘‘तुम्हारी प्रेमिका को मैं ने चुड़ैल कहा तो तुम्हें बुरा लगा है?’’

‘‘हां.’’

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‘‘आप उस से मिलना छोड़ दोगे तो मुझे उस के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल करने की कोई जरूरत ही नहीं रहेगी.’’

‘‘तुम ने इस बात पर ध्यान दिया कि ऐसी गलत फरमाइश कर के तुम एक तरह से यह जाहिर कर रही हो कि तुम्हें मेरे ऊपर विश्वास नहीं है,’’ मैं ने अपना चेहरा यों लटका लिया मानो मेरे दिल को गहरा धक्का लगा हो.

‘‘आप बेकार की बात कर के मुझे

उलझओ मत.’’

‘‘तो मैं बेकार की बातें करना खत्म करता हूं और तुम मेरा सीधासीधा जवाब सुन लो. मैं तुम्हारे दबाव में आ कर उस से मिलना नहीं छोड़ूंगा. अगर मैं ने ऐसा किया तो उस की व अपनी नजरों में गिर जाऊंगा,’’ मैं ने ये सख्त शब्द भी अपने मुंह से मुसकराते हुए निकाले थे.

मेरा जवाब सुन कर उस की आंखों में आंसू ?िलमिला उठे तो मैं जल्दी से आगे बोला, ‘‘पर मैं तुम्हारे मन का शक दूर करने को एक और काम कर सकता हूं?’’

‘‘कौन सा काम?’’ उस ने रुंधे गले से पूछा.

जवाब में मैं ने जेब से अपना मोबाइल निकाला और नीरजा से उसी वक्त बात करी.

‘‘हैलो नीरजा… इस वक्त तुम कहां हो… नहीं, अपने घर मत जाओ… तुम से मेरी वाइफ श्वेता अभी मिलने को बहुत उतावली हो रही है… पार्टी में मुलाकात नहीं हुई, इसीलिए ही तो मिलना चाह रही है… मिलने की ऐसी इमरजैंसी क्यों है, यह वे ही तुम्हें बताएगी… हां, तुम मेरा पता नोट करो…’’ उसे अपने घर का पता नोट कराने के बाद मैं ने फोन काट दिया.

मुझे शरारती अंदाज में मुसकराते देख श्वेता चिड़े लहजे में बोली, ‘‘उसे इस वक्त घर क्यों बुलाया? हमारे बीच सुलहसफाई कराने कोई दूसरा आए, यह मैं बिलकुल बरदाश्त नहीं करूंगी.’’

‘‘तुम अपनेआप को बहुत होशियार समझती हो, तो अब उस के हावभाव देख कर पहचानना कि वह मुझ से फंसी हुई है कि नहीं,’’ लापरवाही से मैं ने यह जवाब दिया और उसे परेशान हालत में छोड़ कर कपड़े बदलने बैडरूम की तरफ चल पड़ा.

श्वेता मुझ से नीरजा को यों घर बुलाने के लिए बहुत झगड़ी. जब मैं जवाब में सिर्फ मुसकराता रहा तो उस ने झगड़ना छोड़ा और टैंशन से भरी नीरजा के घर पहुंचने का इंतजार करने लगी.

करीब आधे घंटे बाद नीरजा हमारे घर आ पहुंची. श्वेता का आज पहली बार उस से आमनासामना हुआ. उन दोनों का परिचय कराने के बाद मैं तो आगे का तमाशा देखने के लिए आराम से सोफे पर बैठ गया.

उस के सामने श्वेता ने अपना आत्मविश्वास खो सा दिया था. सच ही उस के जैसे अजीबोगरीब व्यक्तित्व वाली युवती से पहले उस का सामना हुआ भी नहीं था.

नीरजा लंबे कद और आकर्षक फिगर वाली युवती थी. उस ने बदन से चिपकी नीली जींस और लाल रंग की छोटी कुरती पहनी हुई थी. देखने में बहुत मौडर्न नजर आने वाली नीरजा के चेहरे पर नाममात्र का मेकअप था. उस ने कोई ज्वैलरी भी नहीं पहन रखी थी. कलाई में पहनने के लिए उस ने घड़ी भी वैसी बड़े डायल वाली चुनी थी जैसी आमतौर पर आदमी पहनते हैं.

नीरजा ने खुद ही वार्त्तालाप शुरू करते हुए श्वेता से पूछा, ‘‘तुम मुझ से कोई खास बात करना चाह रही हो श्वेता?’’

‘‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है,’’ श्वेता की आवाज में बेचैनी साफ झलक रही थी.

‘‘फिर कैसी बात है?’’

‘‘आज पार्टी में मुझे कई लोगों से सुनने को मिला कि तुम्हारे और समीर के बीच चक्कर चल रहा है.’’

‘‘रियली?’’ नीरजा ठहाका मार कर हंसी तो श्वेता जबरदस्त उलझन का शिकार बन गईर्.

‘‘यह नादान समझती है कि हमारे बीच इश्क चल रहा है. व्हाट ए जोक,’’ मेरी बात सुन कर नीरजा पर हंसने का ऐसा दौरा पड़ा कि वह सोफे पर लुढ़क गई.

‘‘इस में इतना हंसने की क्या बात है?’’ श्वेता खीज उठी.

‘‘तुम्हारी नाराजगी मैं बाद में दूरकर दूंगी. पहले तुम मेरे साथ किचन में आओ. मैं ने पार्टी में ढंग से खाया नहीं है. मुझे पहले कुछ खिलाओ,’’ नीरजा ने श्वेता का हाथ बड़े अपनेपन से पकड़ा और उसे ले कर किचन की तरफ चल दी.

मैं भी उन के पीछेपीछे वहीं पहुंच गया. नीरजा ने फ्रिज में अंडे रखे देखे तो आमलेट खाने

की इच्छा प्रकट कर दी. मजे की बात यह थी कि उस ने आमलेट श्वेता को नहीं बनाने दिया और सारी तैयारी खुद शुरू कर दी.

आमलेट बनाते हुए उस ने बहुत सुरीली आवाज में एक लोकप्रिय गीत गुनगुनाना शुरू कर दिया तो रसोई का माहौल बहुत संगीतमय हो गया.

‘‘तुम तो बहुत अच्छा गाती हो,’’ जब उस का गाना रुका तो श्वेता उस की आवाज की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाई थी.

‘‘मैं तो गुणों की खान हूं,’’ नीरजा ने हंसते हुए खुद ही अपनी प्रशंसा करनी शुरू कर दी, ‘‘मैं नाचती भी बहुत अच्छा हूं. कुकिंग के भी कई कोर्स कर रखे हैं. मेरे फ्लैट में मेरी बनाई पेंटिंग्स देखोगी तो दांतों तले उंगली दवा लोगी.’’

‘‘इस की पेंटिंग्स देख कर चूंकि तुम्हें कुछ समझ में नहीं आएगा, इसलिए हैरान तो तुम हो ही जाओगी. यह मौडर्न पेंटिंग्स बनाती है, जिन्हें इस के अलावा शायद ही कोई दूसरा समझता हो,’’ मैं ने नीरजा को यों छेड़ा तो उस ने पास में रखा रसोई का कपड़ा मेरे ऊपर फेंक  मारा.

‘‘तुम इस की बकवास पर ध्यान मत दो और मेरे घर मेरी पेंटिंग्स देखने जरूर आना, श्वेता,’’ नीरजा ने मुसकराते हुए श्वेता को अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया.

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‘‘मैं आऊंगी,’’ हमारी नोकझोंक देख कर श्वेता अपनी नाराजगी फिलहाल भूल गई.

‘‘अकेली मत जाना इस के घर,’’ मैं ने श्वेता को यह सलाह दी तो नीरजा ने मुझे नकली नारजगी से घूरा.

‘‘आप जा सकते हो तो क्या मैं नहीं जा सकती हूं?’’ श्वेता का यह जवाब सुन कर जब नीरजा और मैं फिर जोर से हंस पड़े तो वह बेचारी फिर से उलझ कर रह गई.

जब नीरजा फेंटे हुए अंडों को तवे पर डाल रही थी तब श्वेता ने अचानक उस से

पूछा, ‘‘तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं करी है?’’

‘‘कोई जीवनसाथी बनाने लायक उचित वंदा नहीं मिला,’’ नीरजा ने नाटकीय अंदाज में गहरी सांस छोड़ कर जवाब दिया.

‘‘ऐसे क्या गुण तुम उस में ढूंढ़ रही हो जो अब तक किसी में भी नहीं मिले?’’

‘‘वह इतना समझदार होना चाहिए कि मुझे अपने ढंग से जीने की आजादी दे, जिसे दुनिया के कुछ भी कहने की परवाह न हो, जो खुद को मेरे ऊपर थोपने की कोशिश न करे, जिस के सामने मुझे कभी बनावटी मुखौटा न ओढ़ना पड़े.’’

‘‘ऐसा पति मिलना तो सचमुच मुश्किल है.’’

‘‘मेरे मामले में तो नामुमकिन ही है. बहुत कम मर्द हैं, जिन्हें मैं अच्छा इंसान होने के नाते दिल से इज्जत देती हूं और तुम्हारे पति उन में से एक हैं. हमारे बीच जो बहुत अच्छी दोस्ती है, उसे मैं इस के साथ इश्क का चक्कर चलाने की मूर्खता कर के कभी नहीं खोना चाहूंगी, श्वेता.’’

‘‘समझदार लोग कहते हैं कि आग और घी को पासपास रखना मूर्खतापूर्ण और खतरनाक होता है,’’ श्वेता ने संजीदा हो कर अपने पक्ष में दलील दी.

‘‘श्वेता, यों शक कर के अपने पति का और मेरा दिमाग खराब मत करो. समीर के साथ मैं अपनी दोस्ती को बहुत खास मानती हूं. तुम ने इसे तोड़ने की जिद जारी रखी तो यह बहुत गलत होगा. अब मैं चलूंगी और इसे कार में खाने के लिए ले जा रही हूं,’’ कह नीरजा ने मुझे गले से लगाया और फुरती से आमलेट को 2 ब्रैडस्लाइस के बीच रख कर दरवाजे की तरफ  चल पड़ी.

उसे जाने की जल्दी क्यों थी, यह हमें बाहर आने के बाद समझ आया. हम ने बाहर आ कर देखा कि नीरजा की कार में एक बहुत सुंदर लड़की बैठी उस का इंतजार कर रही थी.

‘‘सौरी, स्वीटहार्ट,’’ नीरजा ने कार में घुंसते ही उस लड़की के गाल पर माफी मांगने वाले अंदाज में चुंबन अंकित किया और एक बार हम दोनों की तरफ हाथ हिलाने के बाद कार स्टार्ट कर के चली गई.

‘‘सुनोजी, नीरजा के साथ यह लड़की कौन थी?’’ श्वेता बहुत हैरानपरेशान सी नजर आ रही थी.

‘‘वह नीरजा की प्रेमिका है,’’ मैं ने शरारती अंदाज में मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या नीरजा उस टाइप की लड़की है जिन्हें लड़के नहीं बल्कि लड़कियां…’’ श्वेता अपना वाक्य शर्म के मारे पूरा नहीं कर सकी.

‘‘हां, और अब तुम समझ सकती हो कि हमारे बीच इश्क का चक्कर चलने की बात सुन कर नीरजा और मैं क्यों पागलों की तरह हंस रहे थे.’’

श्वेता ने खिसियानी सी हंसी हंस कर पूछा, ‘‘क्या आप को झेंप नहीं आती है उस से मिलनेजुलने में?’’

‘‘अरे, झेंप क्यों? वह दिल की अच्छी होने के साथसाथ अपने काम में बहुत निपुण और कला के क्षेत्र में भी बहुत टेलैंटेड है. हमारे काम की तारीफ सारे सीनियर औफिसर करते हैं. वह मेरी बहुत अच्छी दोस्त है पर जो उसे समझ नहीं सकते, उन लोगों के साथ बहुत रिजर्व रहती है. इस कारण किसी की हिम्मत नहीं होती उस के साथ फालतू की बात करने की.

‘‘इस मामले में मैं अपनी सोच तुम्हें बताता हूं. मुझे इस बात से क्या लेनादेना कि वह किसी लड़के के साथ अपना जीवन गुजारना पसंद करेगी या किसी लड़की के साथ. उसे इस बारे में फैसला करने का अधिकार तो अब कानून भी देता है,’’ मैं ने संजीदा लहजे में उसे अपने नजरिए से अवगत करा दिया.

‘‘आज का भटका हुआ एक युवावर्ग जो गुल खिला दे, सो कम है,’’ श्वेता की आवाज में उस खास तरह के युवावर्ग की आलोचना के भाव मौजूद थे.

मैं पिछले दिनों उस के घर ज्यादा जा रहा था क्योंकि दोनों कोविड-19 के दिनों कई दिन

अस्पताल रही थीं और लौटनेके बाद मैं उन्हें लौकडाउन खुलने के बाद खाना पहुंचाता रहा था. दोनों से पहले थोड़ी दोस्ती थी पर फिर कुछ ज्यादा हो गई. तुम्हें इसलिए बताया नहीं बताया क्योंकि मुझे मालूम था कि तुम समझेगी. मैं तो ऐसा ही मौका ढूंढ़ रहा था जब मामला गर्म हो तो उस पर पानी के छींटे मारे जा सकें. कोविड-19 के बाद औफिस की पहली ही पार्टी में तुम ने मुझे वह मौका दे दिया.

‘‘अब बदले वक्त के साथ चलते हुए तुम इस अंदाज से सोचना बंद कर दो, जानेमन. उस खास युवावर्ग और हम में कोई फर्क नहीं है. बात अपनीअपनी रुचि की है और हमें न्यायाधीश बन कर उन की तरफ उंगली उठाने का कोई अधिकार नहीं है. उन्हें भी खुश और सुखी रहने का उतना ही अधिकार है, जितना तुम्हें और मुझे.’’

‘‘यस सर,’’ श्वेता ने फौरन मुझे जोरदार सलाम किया, ‘‘आप नीरजा के साथ अपनी दोस्ती को खूब निभाइए… मुझ मूर्ख को माफ कर दो. मुझे आप के प्रेम पर शक करने के बीज को पनपने के लिए अपने मन में जगह देनी ही नहीं चाहिए थी.’’

‘‘जानेमन, इस जुर्म की माफी इतनी आसानी से नहीं मिलेगी.’’

‘‘तब मुझे माफी पाने के लिए क्या करना होगा?’’ उस ने आंखें मटकाते हुए पूछा.

‘‘तुम मुझे इतना प्यार करो कि… कि…’’

‘‘मैं समझ गई, मेरे सरताज,’’ कह उस ने आगे बढ़ कर मुझे अपनी बांहों में भरा और अपने रसीले होंठों को मेरे होंठों के साथ जोड़ दिया.

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