बीपीओ में नौकरी करना अब ट्रैंड सा बन चुका है. उस में नौकरी करने दूरदूर से लोग आते हैं. खासतौर से गांवदेहात में रहने वालों के लिए बीपीओ में काम करना किसी सपने जैसा ही होता है. नौकरी के पीछे भागते हुए वे अपना गांव तो छोड़ आते हैं, लेकिन यहां नौकरी करना उन के लिए आसान नहीं होता. शहरी तौरतरीके सीखतेसीखते उन्हें काफी समय लग जाता है. लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि इन्हें नौकरी के पीछे न भागना पड़े, बल्कि नौकरी इन के पीछे भागे? बात थोड़ी अस्वाभाविक जरूर लग रही होगी, लेकिन ऐसा हो सकता है, क्योंकि देशी क्रू की कोफाउंडर सलोनी मल्होत्रा ने रूरल एरिया में रहने वालों के लिए कुछ ऐसा ही सैटअप तैयार किया है, जहां ट्रेनिंग के बाद गांव के लोग अपनी बीपीओ में काम करने की अभिलाषा भी पूरी कर सकते हैं और अपने परिवार के समीप भी रह सकते हैं.

ऐसे हुई शुरुआत

देशी कू्र के बारे में पूछने पर सलोनी बताती हैं, ‘‘हमारी कंपनी गांवों में जा कर ऐसे औफिस का सैटअप करती है जहां पर गांव के ही लोगों से काम करवाया जाता है. यह काम कालिंग का होता है या फिर कंप्यूटर से जुड़ा हुआ.’’ 8 वर्षों में सलोनी अब तक कई गांवों में ऐसे औफिसों का निर्माण कर चुकी हैं जिन गांव वालों के लिए नौकरी के साथसाथ कुछ नया सीखने के लिए भी है. लेकिन इस अलग तरह के काम को अंजाम देने का विचार सलोनी को कैसे आया? यह पूछने पर वे अतीत में खो जाती हैं. फिर कहती हैं, ‘‘मैं ने पुणे के एक इंजीनियरिंग कालेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. चूंकि मैं दिल्ली की रहने वाली हूं, इसलिए पुणे मेरे लिए नया शहर था. रहने के ठिकाने के रूप में हम स्टूडैंट्स के लिए कालेज का होस्टल हुआ करता था. वहां मैं जिस लड़की के साथ रूम शेयर करती थी वह महाराष्ट्र के एक गांव से आई थी. एक दिन उस ने मुझ से पूछा कि मैं किस फील्ड में इंजीनियरिंग कर रही हूं? तो मैं ने उसे बताया कि इंडस्ट्रियल इलैक्ट्रौनिक्स मेरी ब्रांच है और जब मैं ने उस से उस की ब्रांच पूछी तो बड़े उत्साह से उस ने मुझे बताया कि उस ने कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की. फिर उत्साह से उस ने मुझे यह भी बताया कि उस ने पहले कभी भी कंप्यूटर नहीं देखा, लेकिन इस क्षेत्र में पढ़ाई के बाद उसे बहुत ही अच्छी नौकरी मिली. जब मैं उस के बारे में सोचती हूं तो मुझे बहुत खुशी होती है, लेकिन जब मैं उन गांव वालों के बारे में सोचती हूं, जो तकनीक और शिक्षा के अभाव में अच्छी नौकरी पाने का अपना सपना पूरा नहीं कर पाते, तो मुझे बहुत बुरा लगता है. उस वक्त भी इसी भावना के तहत मैं ने यह निर्णय ले लिया था कि पढ़ाई पूरी करते ही मैं किसी बड़ी कंपनी में जौब करने के बजाय गांव वालों के लिए कुछ काम करूंगी.’’

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