लेखक- जमशेद अख्तर
आसिफ दुकान बंद कर के जब अपने घर पहुंचा, तो ड्राइंगरूम के दरवाजे पर जा कर ठिठक गया. अंदर से उस के अम्मीअब्बा के बोलने की आवाजें आ रही थीं. ‘‘दुलहन तो मुश्किल से 16-17 साल की है और मास्टर साहब 40-50 के. बेचारी...’’
इतना सुनते ही आसिफ जल्दी से दीवार की आड़ में हो गया और सांस रोक कर सारी बातें बड़े ध्यान से सुनने लगा. ‘‘ऐसी शादी से तो बेहतर होता कि लड़की के मांबाप उसे जहर दे कर ही मार डालते,’’ आसिफ की अम्मी सलमा ने कहा.
‘‘तुम नहीं जानती सलमा, लड़की के मांबाप तो बचपन में ही चल बसे थे. गरीब मामामामी ने ही उस की परवरिश की है. 4-4 लड़कियां ब्याहने को हैं,’’ अब्बा ने बताया. ‘‘यह भी कोई बात हुई. कम से कम उस की जोड़ का लड़का तो ढूंढ़ लेते.
‘‘इतनी हसीन और कमसिन लड़की को इस बूढ़े के पल्ले बांधने की क्या जरूरत आ पड़ी थी, जिस के पहले ही 4-4 बच्चे हैं. ‘‘हाय, मुझे तो उस की जवानी पर तरस आ रहा है. कैसे देख रही थी वह मेरी तरफ. इस समय उस पर क्या बीत रही होगी,’’ अम्मी ने कहा.
आसिफ इस से आगे कुछ और सुनने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. वह धीरे से अपने कमरे में जा कर कुरसी पर बैठ गया. आसिफ आंखें मूंद कर सोने लगा, ‘क्या वाकई वह 16-17 साल की है? क्या सचमुच वह हसीन है? अगर वह खूबसूरत लगती होगी तो क्या मास्टर साहब की कमजोर आंखें उस के हुस्न की चमक बरदाश्त कर पाएंगी? आज की रात क्या वह... क्या मास्टर साहब...’ यह सोचतेसोचते उस का सिर चकराने लगा और वह कुरसी से उठ कर कमरे में टहलने लगा.