लेखक- निर्मल कुमार
‘‘अच्छा मां, माफ कर दो,’’ कहते हुए पिंकी की आंखें भर आईं और वह अपने कमरे में चली गई. पिंकी के आंसू देख सोमांश के मन में परिवर्तन आ गया. अब पिंकी का पलड़ा भारी हो गया. अब पूरी घटना उन्हें एक मामूली सी बात लगने लगी जिसे कजली अकारण तूल दे बैठी थी. अब उन का गुस्सा धीरेधीरे कजली की तरफ मुड़ रहा था कि कजली कुछ नहीं समझती. ग्रेजुएट होते हुए भी अपने जमाने से आगे नहीं बढ़ना चाहती. समझती है कि जो भी अच्छाई है, सारी उस की पीढ़ी की लड़कियों में थी. जरा भी लचीलापन नहीं. समझने को तैयार नहीं कि अब पिंकी नए जमाने की युवती है, जो उस की परछाईं नहीं हो सकती. रात को बिस्तर पर काफी देर तक उन्हें नींद नहीं आई. वे यही बातें सोचते रहे. उधर कजली उन का इंतजार करती रही. कोई एक स्पर्श या कोई प्रेम की एक बात. यह इंतजार करतेकरते उस की कितनी रातें वीराने में लुटी थीं. मगर यह हसरत जैसे पूरी न होने के लिए ही उस की जिंदगी में अब दफन होती जा रही थी. शायद औरतों का मिजाज इसीलिए कड़वा हो जाता है कि वह कभी भी अपने भीतर की युवती को भुला नहीं पाती. वह उस का अभिमान है. देह ढल जाती है मगर वह अभिमान नहीं ढलता. यदि उस का पति उसे थोड़ा सा एहसास भर कराता रहे कि उस की नजरों में वह सब से पहले प्रेमिका है, फिर पत्नी और फिर बाद में किसी की मां, तो उस का संतुलन शायद कभी न बिगड़े मगर पति तो उसे मातृत्व का बोझ दे कर प्रेमिका से अलग कर देता है.