रवि ने उस दिन की छुट्टी ले रखी थी. दफ्तर में उन दिनों काम कुछ अधिक ही रहने लगा था. वैसे काम इतना अधिक नहीं था. परंतु मंदी के मारे कंपनी में छंटनी होने का डर था इसलिए सब लोग काम मुस्तैदी से कर रहे थे. बिना वजह छुट्टी कोई नहीं लेता था. क्या पता, छुट्टियां लेतेलेते कहीं कंपनी वाले नौकरी से ही छुट्टी न कर दें.
रवि का दफ्तर घर से 20 किलोमीटर दूर था. वह बस द्वारा भूमिगत रेलवे स्टेशन पहुंचता और वहां से भूमिगत रेलगाड़ी से अपने दफ्तर पहुंचता. 9 बजे दफ्तर पहुंचने के लिए उसे घर से साढ़े सात बजे ही चल देना पड़ता था. उसे सवेरे 6 बजे उठ कर दफ्तर के लिए तैयारी करनी पड़ती थी. वह रोज उठ कर अपने और विभा के लिए सवेरे की चाय बनाता था. फिर विभा उठ कर उस के लिए दोपहर का भोजन तैयार कर डब्बे में रख देती, फिर सुबह का नाश्ता बनाती और फिर रवि तैयार हो कर दफ्तर चला जाता था.
विभा विश्वविद्यालय में एकवर्षीय डिप्लोमा कोर्स कर रही थी. उस की कक्षाएं सवेरे और दोपहर को होती थीं. बीच में 12 से 2 बजे के बीच उस की छुट्टी रहती थी. घर से उस विश्वविद्यालय की दूरी 8 किलोमीटर थी. उन दोनों के पास एक छोटी सी कार थी. चूंकि रवि अपने दफ्तर आनेजाने के लिए सार्वजनिक यातायात सुविधा का इस्तेमाल करता था इसलिए वह कार अधिकतर विभा ही चलाती थी. वह कार से ही विश्वविद्यालय जाती थी. घर की सारी खरीदारी की जिम्मेदारी भी उसी की थी. रवि तो कभीकभार ही शाम को 7 बजे के पहले घर आ पाता था. तब तक सब दुकानें बंद हो जाती थीं. रवि को खरीदारी करने के लिए शनिवार को ही समय मिलता था. उस दिन घर की खास चीजें खरीदने के लिए ही वह रवि को तंग करती थी वरना रोजमर्रा की चीजों के लिए वह रवि को कभी परेशान नहीं होने देती.
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