कुछ पेचीदा काम में फंस गई थी नेहा. हो जाता है कभीकभी. जब से नौकरी में तरक्की हुई है तब से जिम्मेदारी के साथसाथ काम का बोझ भी बढ़ गया है. पहले की तरह 5 बजते ही हाथपैर झाड़, टेबल छोड़ उठना संभव नहीं होता. अब वेतन भी दोगुना हो गया है, काम तो करना ही पड़ेगा. इसलिए अब तो रोज ही शाम के 7 बज जाते हैं.

नवंबर के महीने में चारों ओर कोहरे की चादर बिछने लगती है और अंधेरा हो जाता है. इस से नेहा को अकेले घर जाने में थोड़ा डर सा लगने लगा था. आजकल रात के समय अकेली जवान लड़की के लिए दिल्ली की सड़कें बिलकुल भी सुरक्षित नहीं हैं, चाहे वह सुनसान इलाका हो या फिर भीड़भाड़ वाला, सभी एकजैसे हैं. इसलिए वह टैक्सी या औटोरिकशा लेने का साहस नहीं करती, बस ही पकड़ती है और बस उसे सोसाइटी के गेट पर ही छोड़ती है.

आज ताला खोल कर जब उस ने अपने फ्लैट में पैर रखा तब ठीक 8 बज रहे थे. फ्रैश हो कर एक कप चाय ले जब वह ड्राइंगरूम के सोफे पर बैठी तब साढ़े 8 बजे रहे थे.

आकाश में जाने कब बादल घिर आए थे. बिजली चमकने लगी थी. नेहा शंकित हुई. टीवी पर रात साढ़े 8 बजे के समाचार आ रहे थे. समाचार शुरू ही हुए थे कि एक के बाद एक दिलदहलाने वाली खबरों ने उसे अंदर तक हिला दिया.

पहली घटना में चोरों ने घर में अकेली रहने वाली एक 70 वर्षीय वृद्धा के फ्लैट में घुस कर लूटपाट करने के बाद उस की हत्या कर दी. दूसरी घटना में फ्लैट में रहने वाली अकेली युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई. तीसरी घटना में भी कुछ ऐसा ही किया गया था. छेड़छाड़ की घटना तूल पकड़ती कि इतने में लड़की का भाई आ गया, जिस से बदमाश भाग खड़े हुए. नेहा ने हड़बड़ा कर टीवी बंद कर दिया. आज 9 बजे का सीरियल देखने का भी उस का मन नहीं हुआ. तभी बादल गरजे और तेजी से बारिश शुरू हो गई. बारिश के साथ तेज हवा भी चल रही थी.

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