सदियों से भारतीय समाज में नारी की अक्षत योनि की अवधारणा के कारण नारीवर्ग पर बहुत अत्याचार होते आए हैं. कई देशों में तो आज भी नारी का विवाह से पूर्व कौमार्य परीक्षण कराया जाता है. इस परीक्षण में असफल युवतियों को मौत के घाट उतार देने का भी प्रावधान है. जबकि यह सभी जानते हैं कि दौड़तेभागते, खेलतेकूदते, साइकिल चलाते समय कौमार्य झिल्ली फट जाती है. यह एक शारीरिक प्रक्रिया है, जो कभी भी घट सकती है. इसे चरित्र से जोड़ना किसी भी रूप में उचित नहीं है. विडंबना तो यह है कि अक्षत योनि की महत्ता की बात धर्म और समाज द्वारा बचपन से ही नारी के मनमस्तिष्क में अच्छी तरह बैठा दी जाती है कि जिस नारी की योनि भंग हुई या जिस ने अपनी मर्यादा का निर्वाह नहीं किया, यानी विवाहपूर्व किसी से शारीरिक संबंध स्थापित किए उस चरित्रहीन नारी के लिए समाज में कतई जगह नहीं होती है. हमारे समाज में नारी की अक्षत योनि को ले कर बहुत होहल्ला होता है, मगर पुरुष के अक्षत लिंग को ले कर कोई बात तक नहीं करता है. उसे विवाहपूर्व या विवाह के बाद किसी भी नारी से यौन संबंध बनाने की छूट मिली होती है. दुनिया भर के कुकर्म कर के भी वह समाज में सिर उठा कर चलता है जबकि नारी द्वारा किए गए छोटे से अपराध के लिए भी उस से उस का जीने का अधिकार तक छीन लिया जाता है.

वृहत्वाराशर स्मृति के अनुसार नारी में कामवासना पुरुष से 8 गुना अधिक होती है. बावजूद इस के वह कितना संयमित जीवन व्यतीत करती है, यह सभी को पता है. यौन संबंध जहां एक प्राकृतिक भूख है वहीं शारीरिक और मानसिक संतुष्टि का सशक्त माध्यम भी और इन संबंधों को केवल इसी नजरिए से देखा भी जाना चाहिए न कि चारित्रिक नजरिए से. साथ ही इस मानसिकता को भी अपनाना होगा कि अगर कुछ लड़कियां प्रेम या विवशतावश विवाहपूर्व शारीरिक संबंध स्थापित कर भी लेती हैं, तो भी उन का व्यक्तित्व मैला नहीं होता. सैक्स जिसे प्रेम की चरमसीमा भी कहा जाता है उस को छू लेना कोई अनैतिक कृत्य नहीं, जिस के लिए अविवाहित लड़की को पुरुष प्रेमी से धोखा मिलने पर अपने जीवन को खत्म करना पड़े या मुंह छिपा कर अंधेरे को अपना साथी बनाना पड़े. जो बीत गया सो बीत गया. जीवन में आगे बढ़ें. नई मंजिलें, नई खुशियां आप की राह ताक रही हैं. नारी को यह समझना होगा कि जब पुरुष अपनी शारीरिक शुचिता को सिद्ध करने के लिए बाध्य नहीं है तो फिर सारी नैतिकता का जिम्मा उसी पर क्यों? पुरुषों के कंधों पर क्यों नहीं? नारी को स्वयं अपनी देह से ऊपर उठ कर सोचना होगा, यौन संबंध को व्यापक अर्थों में लेना होगा. प्रेम में धोखा खाने या बलात्कार का शिकार होने पर स्वयं को दूषित समझने और मौत को गले लगाने के बजाय पूरे आत्मविश्वास के साथ विपरीत हालात को सामान्य हालात में बदलना होगा, खुल कर जीने की पहल करनी होगी. होना तो यह चाहिए

समाज में नारीपुरुष के मध्य कोई भेदभाव न हो, सभी क्षेत्रों में दोनों सामूहिक रूप से स्वतंत्र व सहज रूप से अपनेपन से कार्य करें, किसी भी लिंग के लिए किसी विशेष सुविधा का प्रावधान न हो. केवल भावनाओं और दोस्ती का महत्त्व हो. तब ऐसे उन्मुक्त वातावरण में अक्षत योनि का प्रश्न ही नहीं उठेगा.

विक्षिप्त मानसिकता

यह पुरुष की विक्षिप्त मानसिकता का ही परिचायक है कि वह विवाहपूर्व जिस नारी से प्रेम करता है जिस के साथ शारीरिक संबंध बनाता है उस प्रेमिका से विवाह करना स्वीकार नहीं करता है. उलटे यह उम्मीद करता कि उसे अक्षत योनि वाली पत्नी मिले. गुस्सा आता है ऐसी मानसिकता रखने वाले पुरुषों पर जो यह भूल जाते हैं कि हम जैसा बोते हैं वैसा ही काटते हैं.

सुरक्षित नहीं

इस में कतई संदेह नहीं कि विवाहपूर्व के यौन संबंध भविष्य के लिए सदैव चिंता का विषय रहते हैं. लड़कियां भावुक और अतिसंवेदनशील होती हैं जिस का फायदा प्राय: अवसरवादी पुरुष प्रेम की आड़ में अपनी कामपिपासा को शांत करने के लिए उठाते हैं. इसलिए लड़कियों को चाहिए कि अपनी आंखें खुली रख कर सही पुरुष प्रेमी का चुनाव करें. भावना में बह कर किए गए निर्णय भविष्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं.

अपेक्षा नारी से ही क्यों

नारी जीवन में बहुत से समझौते सामाजिक, धार्मिक आर्थिक परिस्थितियों के कारण भी कर लेती है, जिस का खमियाजा उसे ताउम्र आंसू बहाते हुए करना पड़ता है. हमारे समाज में ऐसे पुरुषों की कमी नहीं जो अपनी यौन संतुष्टि के लिए परस्त्री, वेश्या आदि के पास जा कर अपनी इच्छा शांत कर आते हैं, लेकिन जो पत्नीरूपी नारी घर में बैठी है वह अपनी यौनेच्छा की संतुष्टि कैसे करे? यह सोचने वाली बात है. ऐसे में यौन रूप से असंतुष्ट नारी परपुरुष से यौनसंबंध स्थापित कर लेती है तो क्या उसे चरित्रहीन कहना उचित होगा? सारी नैतिकता की जिम्मेदारी केवल नारी की ही तो नहीं, पुरुष का भी दायित्व बनता है कि वह नारी को तनमन और धन से संतुष्ट रखे. केवल नारी से ही सतीसावित्री होने की आशा रखना उचित नहीं है.

धर्मों में नारी की शुचिता

लगभग सभी धर्मों में नारी की शुचिता को विशेष महत्त्व दिया गया है. लगभग हर धर्म में विवाह से पूर्व शारीरिक संबंध बनाने वाली नारी को दुष्चरित्र, कुलटा आदि कई नामों से संबोधित किया गया है. इसलाम धर्म में तो दुष्कर्म करने वाली नारी और पुरुष दोनों को पत्थर मार कर मार डालने की सजा का प्रावधान है. लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि जितना दुरुपयोग नारी का धर्म के कारण होता है उतना किसी और कारण से नहीं.    

– डा. फौजिया नसीम ‘शाद’

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