ढोलक की थाप पर बन्नाबन्नी गाती सहेलियों और पड़ोस की भाभियों का स्वर छोटे से घर को खूब गुलजार कर रहा था. रत्ना हलदी से रंगी पीली साड़ी में लिपटी बैठी अपनी सहेलियों के मधुर संगीत का आनंद ले रही थी. बन्नाबन्नी के संगीत का यह सिलसिला 2 घंटे से लगातार चल रहा था.
बीचबीच में सहेलियों और भाभियों के बीच रसिक कटाक्ष, हासपरिहास और चुहलबाजी के साथ स्वांग भी चलने लगता तो अम्मा आ कर टोक जातीं, ‘‘अरी लड़कियो, तुम लोग बन्नाबन्नी गातेगाते यह ‘सोहर’ के सासबहू के झगड़े क्यों अलापने लगीं?’’
थोड़ीबहुत सफाई दे कर वे फिर बन्नाबन्नी गाने लगतीं. अम्मा रत्ना को उन के बीच से उठा कर ‘कोहबर’ में ले गईं. बाहर बरामदे में उठते संगीत का स्वर कोहबर में बैठी रत्ना को अंदर तक गुदगुदा गया :
‘‘मेरी रुनकझुनक लाड़ो खेले गुडि़या
बाबा ऐसा वर खोजो
बीए पास किया हो,
बीए पास किया हो.
विलायत जाने वाला हो,
विलायत जाने वाला...’’
उस का वर भी तो विलायत में रहने वाला है. जी चाहा कि वह भी सहेलियों के बीच जा बैठे.
उस का भावी पति अमेरिका में इंजीनियर है. यह सोचसोच कर ही जबतब रत्ना का मन खुशी से भर उठता था. कोहबर में बैठेबठे वह कुछ देर के लिए विदेशी पति से मिलने वाली सुखसुविधाओं की कल्पना में खो गई. वह बारबार सोच रही थी कि वह कैसे अपने खूबसूरत पति के साथ अमेरिका घूमेगी, सुखसमृद्धि से सुसंपन्न बंगले में रहेगी और अपनी मोटरगाड़ी में घूमेगी. वहां हर प्रकार के सुख के साधन कदमकदम पर बिछे होंगे.
एकाएक उसे अपने मातापिता की उस प्रसन्नता की भी याद आई जो उसे सुखी देख कर उन्हें प्राप्त होगी. उस प्रसन्नता के आगे तो उसे अपने सुख के सपने बड़े सतही और ओछे नजर आने लगे.