आजकल महिलाओं के बीच दशहरादीवाली से ज्यादा करवाचौथ के चर्चे हैं. ज्यादातर विवाहित और अविवाहितों ने अभी से ही 1-2 दिनों की छुट्टियां लेने का मन बना लिया है.

कहते हैं, करवाचौथ का व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं और इस दिन वे सुबह से रात चांद निकलने तक कुछ नहीं खाती पीती हैं. रात को चांद देखने के बाद पति के हाथों पानी पी कर ही व्रत समाप्त करती हैं.

दक्षिण भारत में ज्यादा प्रचलित क्यों नहीं

आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि करवाचौथ का त्योहार ज्यादातर उत्तर भारत में ही मनाया जाता है. दक्षिण भारत के कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना आदि राज्यों में यह न के बराबर मनाया जाता है.

सवाल है कि जब दक्षिण भारत में इसे नहीं मनाया जाता है फिर वहां के पुरूषों की उम्र उत्तर भारतीयों की अपेक्षा कम होनी चाहिए?

नहीं, बिलकुल नहीं. आपको यह जान कर हैरानी होगी कि दक्षिण भारतीय पुरूषों की उम्र उत्तर भारतीय पुरूषों की तुलना में अधिक होती है और वे यहां के पुरूषों की अपेक्षा स्वस्थ भी होते हैं.

अंधविश्वास की पराकाष्ठा

करवाचौथ को आस्था कहें या अंधविश्वास, सच तो यह है कि यह भी एक गुलाम परंपरा की तरह ही है, जिसकी बेड़ियों में आज भी महिलाएं बंधी हैं.

गुरूग्राम में एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत इंजीनियर संदीप भोनवाल बताते हैं,”यह एक ऐसा त्योहार है, जिस में महिलाएं दिन भर भूखीप्यासी रह कर पति की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना करती हैं.

“अगर इस त्योहार को करने से पति स्वस्थ जीवन बिताए और लंबी उम्र का हो जाए तो फिर अस्पतालों में भीङ दिखनी बंद हो जाए. मेरा मानना है कि करवाचौथ का व्रत रखने से पति की आयु लंबी होती हो तो फिर पतियों की उम्र तो सैकड़ों साल लंबी होनी चाहिए.”

संदीप कहते हैं,”पतिपत्नी जीवनरूपी गाङी के 2 पहिए हैं, जिन का साथ एकदूसरे के सुखदुःख में साथ निभाने की होनी चाहिए. गृहस्थ जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए पतिपत्नी के बीच आपसी अंडरस्टैंडिंग जरूरी है न कि करवाचौथ का व्रत.”

सिर्फ अंधविश्वास है

समाजसेवी अनिता शर्मा मानती हैं कि इस व्रत की कहानी अंधविश्वासपूर्ण भय उत्पन्न करती है न कि पति की उम्र बढाती है.

वे कहती हैं,”क्या पत्नी के भूखे रहने से पति की लंबी आयु हो सकती है? दरअसल, यह अंधविश्वास और आत्मपीङन की बेडियों में जकङने की एक साजिश है, जिसकी शुरूआत ही महिलाओं को परंपरा के नाम पर शोषित करना है.”

आस्था के नाम पर यह कैसी मानसिकता

धर्म और आस्था के नाम पर महिलाओं पर शुरू से ही अत्याचार किए जाते रहे हैं. पति की लंबी आयु के लिए पत्नी व्रत करेगी, बच्चों की सुखद भविष्य के लिए मां यानी एक महिला व्रत करेगी, वह घर के लिए त्याग करेगी, सब से अंत में खाना खाएगी.

क्या पति अपनी पत्नी के लिए व्रत रखता है? पत्नी की लंबी आयु के लिए समाज में कोई व्रत निर्धारित है?

माना कि नारी प्रकृति की अनमोल कृति है, त्याग की मूर्ति है, कोमल हृदय की है पर क्या यही अपेक्षा पुरूषों से नहीं की जानी चाहिए?

औरत से ही अपेक्षा क्यों

हकीकत तो यह है कि भारतीय समाज सिर्फ एक औरत से ही सब कुछ पाने की उम्मीद करता है पर नारी को आज भी वह सम्मान नहीं मिल पाया  जिस की वह हकदार है.

इस समाज में कुछ आतातायी पुरूष मासूम बच्चियों तक को हवस का शिकार बनाने से नहीं चूकते. क्या उन्हें यह पता नहीं कि उस को शरीर देने वाली उस की माता भी एक औरत है, तो कम से कम औरतों की सम्मान करना तो सीखे.

अच्छा तो यह है कि-

  • पति और पत्नी में जीवनभर सामंजस्य रहे.
  • पति पत्नी पर अत्याचार न करे.
  • पत्नी पर घरेलू हिंसा न हो.
  • पत्नी को घर के सभी लोग सम्मान दें.
  • पति नशा न करे और न ही पत्नी पर कभी हाथ उठाए.
  • पत्नी के सपनों और आजादी को कुचला न जाए.
  • घर के कामकाज में पति पत्नी का हाथ बंटाए.
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