कद्दूजैसी बेडौल और बेस्वाद चीज भी क्या चीज है यह तो सोचने वाला ही जाने, पर हमारी छोटी सी बालकनी की बाटिका में भी कद्दू कभी फलेगा, यह मैं ने कभी नहीं सोचा था. पर ऐसा होना था, हुआ.
बागबानी का शौक मेरे पूरे परिवार को है. मेरी 12वीं माले की बालकनी में 15-20 पौट्स हमेशा लगे रहते हैं. इस छोटी सी बगिया में फूलफल और सब्जी की खूब भीड़ है. इसी
भीड़ में एक सुबह देखा कि सेम की बेल के पास ही एक और बेल फूट आई है, गोलगोल पत्तों की. थोड़ा और बढ़ने पर हमें संदेह हुआ कि हो न हो पंपकिन यानी कद्दू महाराज तशरीफ ला रहे हैं.
अपने व्हाट्सऐप गु्रप में आप किसी से कद्दू पसंद है पूछो तो यही जवाब मिलेगा कि अजी, कद्दू भी कोई पसंद करने वाली चीज है...
एक ने हतोत्साहित किया कि उन्होंने बड़े चाव से कद्दू का बीज बोया था, बेल भी बहुत फली. सारी छत पर पैर पसारे पड़ी है, पर कद्दू का अब तक कहीं नाम नहीं है. वैसे भी सुन रखा था कि कद्दू की बेल फैल तो जाती है, पर फल बड़ी मुश्किल से आता है. सो उन की भी यही राय थी कि अपनेआप उगे बीज में फल किसी भी हालत में नहीं आएगा.
मगर मैं ने बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख कहावत की सचाई परखने का निश्चय कर ही लिया. अब मेरी हर सुबहशाम उस बेल की खातिरदारी में लग जाती. सेम की बेल के पास ही एक रस्सी के सहारे उस को दीवार पर चढ़ा दिया गया. शाम को एक फ्रैंड आई. देखा तो बोली, ‘‘कद्दू कोई सेम थोड़े ही है जो बेल में लटके रहेंगे. एक कद्दू का बो झा भी नहीं सह पाएगी तुम्हारी यह बेल.’’
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