परिवार चलाने के लिए जहां बहुत सारे समझौते पतिपत्नी दोनों को मिल कर करने होते हैं, तो वहां कई तरह के कानूनों का मुकाबला भी उन्हें ही करना होता है. राज्यसभा में द्रमुक सांसद कनिमोझी के लिखित सवाल का जवाब देते गृह राज्यमंत्री हरिभाई पार्थीभाई चौधरी ने सरकार की ओर से जवाब देते हुए कहा कि भारतीय विधि आयोग ने अपनी 172वीं रिपोर्ट में बलात्कार संबंधी कानून की समीक्षा करते हुए वैवाहिक बलात्कार के संबंध में किसी भी तरह की कोई सिफारिश नहीं की है. फिर अपने से किए गए सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि इंटरनैशनल लैवल पर वैवाहिक बलात्कार को जिस संदर्भ में देखा जाता है, उसे भारत में लागू नहीं किया जा सकता. शिक्षा, साक्षरता और गरीबी के लैवल के साथ ही सामाजिक मूल्यों और धार्मिक भावनाओं को देखते हुए यह मुमकिन नहीं है.

हुआ क्या है

दरअसल, महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव पर संयुक्त राष्ट्र समिति ने इस कानून की सिफारिश विदेश मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से की थी. संयुक्त राष्ट्र समिति का मानना है कि भारत के लिए यह कानून बेहद जरूरी है. कई सामाजिक संगठन इसे अपराध की सूची में शामिल करने की मांग भी करने लगे हैं. भारत में आईपीसी की धारा 375 के मुताबिक, किसी पुरुष का पत्नी संग सहवास बलात्कार नहीं है बशर्ते उस की उम्र 16 साल से कम न हो. वैवाहिक बलात्कार के संदर्भ में कहा गया है कि अगर पतिपत्नी में से किसी एक की मरजी के बिना अवांछित सैक्स किया जाए और इस में डरानेधमकाने का प्रयोग हो या न हो, तो यह मुकदमा दायर कराया जा सकता है. अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में वैवाहिक बलात्कार कानून की नजर में अपराध माना जाता है. ब्रिटेन में 1991 और अमेरिका में 1993 में यह कानून लागू किया गया. इस में बलात्कार के दूसरे मामलों की ही तरह सजा का प्रावधान रखा गया है.

दुनिया के 127 देशों में यह कानून अभी लागू नहीं है. वहां वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना जाता है. इन देशों में 2.6 अरब से ऊपर की आबादी है और लगभग 60.3 करोड़ महिलाएं ऐसे देशों में रहती हैं जहां घरेलू हिंसा अपराध की श्रेणी में नहीं आती. यह? सच है कि सैक्स हिंसा का बुरा प्रभाव महिलाओं पर पड़ता है. ऐसी महिलाओं से पैदा होने वाले बच्चों का वजन कम रहने की संभावना 16% ज्यादा होती है. उन के गर्भपात के मामले बढ़ जाते हैं और उन के डिप्रैशन में चले जाने की संभावना भी रहती है. ऐसी महिलाओं में एचआईवी होने की संभावना भी डेढ़ गुना बढ़ जाती है. भारत में पतिपत्नी के रिश्तों में सैक्स की अपनी अलग भूमिका है. यहां शादी के पहले सैक्स को सामाजिक स्वीकृति नहीं मिली है. सैक्स में मानमनुहार का अपना अलग स्थान होता है. कई बार माना जाता है कि सैक्स के मामले में भारतीय पत्नी के ‘न’ में ही ‘हां’ छिपी होती है. ऐसे में अगर वैवाहिक बलात्कार कानून बन गया तो ‘न’ में छिपी ‘हां’ की मन:स्थिति को समझना मुश्किल हो जाएगा.

समर्पण का भाव है

स्त्रीपुरुष दोनों को सैक्स की सहज और स्वाभाविक जरूरत होती है. इसी को देखते हुए विवाह संस्था का जन्म हुआ. उस पर स्त्रीपुरुष ही दुनिया के एकमात्र ऐसे प्राणी हैं, जो केवल अपना वंश चलाने के लिए सैक्स नहीं करते. उन के अलावा दुनिया का हर प्राणी केवल अपने वंश को चलाने के लिए ही सैक्स करता है. पतिपत्नी के बीच सैक्स वंश चलाने के साथ ही एकदूसरे के प्रति समर्पण के भाव को भी दर्शाता है. महिला मुद्दों के पैरोकार सैक्स में औरत की भूमिका में खुलेपन की हिमायत करते हैं. वे चाहते हैं कि सैक्स में महिला और पुरुष की सोच एकजैसी हो. थोड़ेबहुत दकियानूसी विरोध के बाद पुरुष वर्ग ने इस को स्वीकार भी कर लिया है.

अब पहले की तरह पत्नी सैक्स संबंधों को ले कर पति के साथ मौन नहीं रहती. वह पति से अपनी इच्छाओं को खुल कर कहती है. कई तरह के सैक्स सर्वे बताते हैं कि भारतीय पत्नियां सैक्स को ले कर पहले से अधिक मुखर हुई हैं. वे पति के साथ खुल कर पोर्नोग्राफी का आनंद लेती हैं. भारत में खजुराहो के मंदिरों पर की गई चित्रकारी दर्शाती है कि सैक्स को ले कर हमारा समाज शुरू से ही सजग और सतर्क रहा है. इस में शुरू से पतिपत्नी की आपसी सहमति का खास खयाल रखा जाता था और माह के खास दिनों में सैक्स से परहेज का पूरा खयाल रख पत्नी की निजता और स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखा जाता था. यही नहीं, पत्नी के गर्भवती होने से ले कर मां बनने तक के समय में उस की शारीरिक परेशानियों का भी ध्यान रखा जाता था. पतिपत्नी के बीच बनने वाले सैक्स संबंधों पर पहरेदारी करने के बजाय उसे उन दोनों के बीच ही छोड़ देना चाहिए. भारतीय पति इतना संवेदनशील है कि वह पत्नी के साथ ऐसे अत्याचार से बचेगा.

सोचनेसमझने वाली बात

यह सच है कि महिलाएं अपने शरीर और दिमाग पर पहले से ज्यादा अपना हक चाहती हैं. ऐसे में पतिपत्नी के बीच बनने वाले सैक्स संबंधों में भी आपसी सहमति जरूरी होती है. हमारे देश में शादी को सामाजिक स्वीकृति मिलती है. यहां उन शादियों को भी नकारा नहीं जा सकता जिन का रजिस्ट्रेशन न हुआ हो. शादी आपसी सामंजस्य और तालमेल पर टिकी होती है. बिना लिखापढ़ी के होने वाली शादी के लिए भी कोई पक्ष इनकार नहीं करता है. शादी की सफलता का मुख्य आधार सैक्स को ही माना जाता है. पतिपत्नी के रिश्ते में सैक्स का अपना महत्त्व होता है और अब सैक्स को पतिपत्नी मिल कर ऐंजौय करते हैं. अगर कोई पुरुष सैक्स के नजरिए से अनफिट की श्रेणी में आता है, तो पत्नी उस से तलाक लेने की हकदार मानी जाती है. लेकिन वैवाहिक बलात्कार कानून लागू होने के बाद पत्नी कभी भी पति पर बलात्कार का आरोप लगा सकती है. ऐसे में विवाह का क्या अर्थ रह जाएगा, यह सोचनेसमझने वाली बात है.

लखनऊ में पारिवारिक अदालत में पिछले 8-9 साल से पतिपत्नी विवाद सुलझा रहीं वकील कामिनी ओझा मानती हैं कि बहुत सारे कानून बेहद जटिल बन जाते हैं. पतिपत्नी के विवाद के बाद मामला जब कोर्ट में पहुंचता है, तो अपनी बात साबित करने में पीडि़त पक्ष को तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. कई बार बचाव पक्ष औरत की निजता को ले कर भी सवाल खड़े करता है, जिस का जवाब देना औरत के लिए मुश्किल हो जाता है. ऐसे में परेशान होने के बावजूद भी औरत को न्याय नहीं मिल पाता है. पारिवारिक झगड़ों को सुलझाने के लिए कानून के बजाय काउंसलिंग का सहारा लेना ज्यादा अच्छा होता है. अगर किसी पत्नी को ऐसी शिकायत होती है, तो घरेलू हिंसा कानून उस की मदद करने में सक्षम है.

कानून की छवि पर असर

कानूनी धाराओं की धमक का प्रभाव किस तरह परिवारों पर पड़ता है इस को देखने के लिए एनसीआरबी की रिपोर्ट को देखा जा सकता है. 2013-14 की रिपोर्ट बताती है कि आत्महत्या करने वालों में 51% लोग शादीशुदा थे और इन में 70% पुरुष थे. रिपोर्ट का मनोविज्ञानी अध्ययन बताता है कि शादी के बाद कानून की धाराओं का दखल जिस तरह से पतिपत्नी के बीच बढ़ गया है उस से आपसी तनाव बढ़ गया है. देश की किसी भी पारिवारिक अदालत को देखें तो वहां रोज नएनए केसों की तादाद बढ़ती जा रही है. यह हालत देश के हर हिस्से की है. सिहोर जिले के पिछले 3 साल के आंकड़े बताते हैं कि पारिवारिक परामर्श केंद्र में कुल 460 मामले आए, जिन में 70% मामलों में फरियादी पुरुष थे.

राजस्थान सरकार इस तरह के मामलों को बढ़ता देख कर झूठे मुकदमे लिखाने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की तैयारी कर रही है. दूसरे प्रदेशों में भी इसी तरह के हालात हैं. कई परेशान पतियों ने आत्महत्या कर ली, तो कुछ ने अपना सब कुछ छोड़ कर मुकदमा लड़ने को ही अपना पेशा बना लिया. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के रहने वाले डाक्टर संजीव टंडन की शादी काशीपुर की आराधना के साथ हुई थी. शादी के कुछ दिनों बाद ही आराधना ने पति के साथ ही पति की मां, चाची, भाई और भाभी के खिलाफ दहेज प्रताड़ना कानून के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. डाक्टर संजीव टंडन मुकदमा लड़ने काशीपुर जाने लगे और कुछ दिनों के बाद वे अपने मामले को समझने लगे. इस के बाद उन्होंने एलएलबी की पढ़ाई की और अपना केस खुद लड़ा. उन्होंने काशीपुर के अपर जिला जज के यहां खुद को बेकुसूर साबित किया.

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के थाना जलालपुर में स्थित गांव मेघपुर में आशा देवी की शादी सोहन लाल के साथ हुई थी. शादी के कुछ दिनों के बाद ही आशा देवी की एक दुर्घटना में जल कर मौत हो गई. आशा के घर वालों ने सोहनलाल और उस के परिवार के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. अदालत के सामने जब मामले की गवाही शुरू हुई तो गवाही देने वाले मुकर गए. साक्ष्य के अभाव में सोहनलाल और उस के परिवार के लोगों को अदालत ने छोड़ दिया. दहेज से जुड़े ज्यादातर मुकदमों में पीडि़त परिवार शिकायत दर्ज कराते समय यह कोशिश करता है कि दूसरे पक्ष को ज्यादा से ज्यादा सजा मिल सके. ऐसे में कई बार अपनी कही गई बात को अदालत के सामने साबित करना मुश्किल हो जाता है, जिस से पूरे कानून की छवि खराब होती है. दहेज कानून के साथ ऐसा ही हो रहा है.

हक मिलना जरूरी

किसी भी स्वस्थ समाज के लिए जरूरी होता है कि वहां रहने वाले सभी लोगों के लिए समान अधिकार हो. इस को औरत और आदमी के नजरिए से न देखा जाए. आदमीऔरत दोनों कंधे से कंधा मिला कर काम करेंगे तो वे अपने हक और अधिकारों को ले कर भी सचेत और समझदार रहेंगे. देश की महिलाओं की जो तरक्की दिख रही है उस में सब से बड़ा हाथ शिक्षा का है. आज के दौर में महिलाएं पढ़लिख कर समान रूप से देश की तरक्की की दौड़ में पुरुषों से आगे खड़ी नजर आती हैं. औरतों को विशेष अधिकार दिए जाने की मांग उन की क्षमता को कमजोर करने का काम करती है.

हो बराबरी की बात

कई बार सरकारें भी ऐसे काम करती हैं, जो महिलाओं की तरक्की में बाधा बन कर खड़े होते हैं. जरूरत इस बात की है कि महिलाओं को इतना सक्षम और मजबूत बनाया जाए कि वे अपना उत्पीड़न करने वाले को सटीक जवाब दे सकें. ऐसा न कर के जब हम महिलाओं को शैल्टर देने की कोशिश करते हैं, तो उन को कमजोर ही बनाते हैं. महिलाओं के खिलाफ ऐसे भेदभाव हर जगह बने हुए हैं. फिल्म और टीवी की दुनिया औरतों की खूबसूरती से चकाचौंध होती है. हीरोइन के बिना किसी फिल्म की कल्पना नहीं की जा सकती. इस के बाद भी जब मेहनताना की बात आती है, तो आदमीऔरत में भेदभाव किया जाता है. हीरोइन को हीरो के मुकाबले कम मेहनताना दिया जाता है.

इस तरह के समाज में बहुत से उदाहरण हैं जहां पर औरतों को दोयम दर्जे का माना जाता है. ऐसी सोच का विरोध होना चाहिए. एक जैसा काम करने के लिए मेहनताना भी एक जैसा ही मिलना चाहिए. जरूरत इस बात की है कि आदमीऔरत के बीच बराबरी की बात की जाए, उन्हें बराबर का हक दिया जाए.

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