खुद को खुलेआम बायोसैक्सुअल मानने वाली फिल्मकार शोनाली बोस ने 2005 में नारी की खोज की आड़ में 1984 के सिक्ख दंगों की पृष्ठभूमि पर फिल्म ‘अमू’ का लेखन, निर्माण व निर्देशन किया था. फिल्म को 2 राष्ट्रीय अवार्ड तथा 4 अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के बावजूद दूरदर्शन ने इसे प्रसारित करने से इनकार कर दिया. उस के बाद शोनाली बोस ने 2012 में फिल्म ‘चिटगौंग’ का सहनिर्माण व सहलेखन किया, जिस का निर्देशन उन के पूर्व पति बेदब्रत पैन ने किया था. अब शोनाली बोस ने ‘सेरेब्रल पल्सी’ से ग्रस्त अपनी फुफेरी बहन मालिनी की जिंदगी पर आधारित फिल्म ‘मार्गरीटा विथ ए स्ट्रा’ ले कर आई हैं. इस फिल्म में ‘सेरेब्रल पल्सी’ का जिक्र कम है, मगर समलैंगिकता यानी ‘गे’ सहित उत्तरपूर्व भारत के राज्यों से जुडे़ कई मुद्दे उठाए हैं.
शोनाली बोस की मंशा 8वीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़कियों को ‘मार्गरीटा विथ ए स्ट्रा’ दिखाने की थी, मगर सैंसर बोर्ड ने फिल्म को ‘ए’ प्रमाणपत्र दे दिया, जिस के चलते इस फिल्म को 8वीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़कियां नहीं देख पाईं. मगर बातचीत में शोनाली बोस ने दावा किया कि वे जल्द ही टीवी पर अपनी इस फिल्म को लाएंगी. तब 8वीं कक्षा की लड़कियां इसे देख कर ऐंजौय कर सकेंगी.
पेश हैं, शोनाली से हुई गुफ्तगू के कुछ अंश:
किस मजबूरी के तहत मालिनी की ही जिंदगी पर ‘मार्गरीटा विथ ए स्ट्रा’ बनाई?
बात उन दिनों की है, जब मैं फिल्म ‘चिटगौंग’ पर काम कर रही थी. तभी एक दिन मालिनी से मेरी बात हुई. वह 40 साल की हो रही थी. मैं ने उस से पूछा कि वह अपने 40वें जन्मदिन पर क्या उपहार चाहती है? तब उस ने कहा कि वह सैक्स करना चाहती है. उस की बात सुन कर मैं चौंक गई. मुझे लगा कि मैं ने मालिनी को ले कर इस तरह से क्यों नहीं सोचा? उस वक्त मालिनी ने जो कुछ कहा, वह मेरे दिमाग में बैठ गया. मुझे लगा कि मैं ने हमेशा यह सोचा कि मेरी बहन के पास सब कुछ है, पर यह नहीं सोचा कि उस की भी प्यार व सैक्स करने की इच्छा हो सकती है. मैं ने सोचा कि मैं शादीशुदा हूं और मुझे लगता है कि शादी नहीं करनी चाहिए. पति तंग करते हैं. पर उस की भी तो शादी करने की इच्छा होती है. मैं आज तलाकशुदा हूं, पर उस वक्त मेरा तलाक नहीं हुआ था. मुझे धक्का इस बात का लगा कि मैं जिस बात को ग्रांटेड मान कर चल रही थी, वही उस का दर्द है. मेरी बहन मालिनी भी सैक्स के अनुभव से गुजरना चाहती थी. अत: मैं ने ‘मार्गरीटा विथ ए स्ट्रा’ बनाई. इसी वजह से मैं ने बारबार यह बात भी कही कि लोग इस फिल्म को विकलांग या सैक्सी अथवा गे फिल्म के रूप में न देखें.
आप ने कहा कि आप चाहती हैं कि आप की फिल्म को 8वीं कक्षा में पढ़ने वाली हर लड़की देखे, तो क्या आप 8वीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़कियों के कोमल मस्तिष्क पर समलैंगिकता की बात भरना चाहती हैं?
देखिए, भारत में मुझे सैंसर बोर्ड से ‘ए’ सर्टिफिकेट पाने से भी परहेज नहीं था. मुझे मालूम है कि यहां लोगों की मानसिकता क्या है, जबकि फ्रांस में हमारी फिल्म को यूथ ज्यूरी का अवार्ड मिला है. पर भारत का मसला बहुत अलग है. हालत यह है कि हमारी फिल्म में लैला के छोटे भाई का किरदार मोनू ने निभाया है. मोनू के मातापिता कश्मीरी व प्रगतिशील हैं. पर उन्होंने मुझे मना किया कि मैं मोनू को पूरी स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए न दूं. मैं ने चीटिंग नहीं की. मोनू के मातापिता ने पूरी स्क्रिप्ट पढ़ी है. इसलिए मैं ने सोचा था कि भारत में यदि मेरी फिल्म को ‘ए’ सर्टिफिकेट मिलेगा, तो भी मैं खुश रहूंगी.
अब मोनू 17 साल को हो गया है, तो मैं ने उस के मातापिता से कहा कि क्या आप अपने बेटे को फिल्म के प्रीमियर के समय फिल्म देखने की इजाजत देंगे तब उन्होंने हामी भरी है. मेरे अपने बेटे और मेरी 14 वर्षीय भतीजी ने इस फिल्म को देखा है. लेकिन टोरंटो फिल्म फैस्टिवल में फिल्म देखते समय वह मेरी बगल में बैठी थी, तो कई ऐसे दृश्य थे, जिन के आने पर उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं थीं. मैं ने उस से इस की वजह नहीं पूछी, पर मुझे लगा कि मैं उस के साथ हूं, इसलिए उस ने ऐसा किया. वरना आंखें फाड़फाड़ कर देखती. मेरी राय में 8वीं कक्षा के बच्चे हमारी फिल्म को देखने के लिए काफी मैच्योर हैं. पर सैंसर बोर्ड ने ‘ए’ सर्टिफिकेट दिया, तो भी मुझे कोई समस्या नहीं है. अब मैं इस फिल्म को टीवी पर दिखाने वाली हूं. मैं यह मानती हूं कि 14 साल के बच्चे को सैक्स सीन नहीं दिखाए जाने चाहिए. पर 14 साल के बच्चे के सामने गे मुद्दे पर चर्चा करना गलत नहीं है.
मैं चाहती हूं कि सैक्सुअलिटी की शिक्षा खुलेआम दी जानी चाहिए. हर जैंडर और ट्रांसजैंडर वालों को भी शिक्षा दी जानी चाहिए. सैक्स ऐजुकेशन तो छठी कक्षा से दी जानी चाहिए. जब लड़का या लड़की 5वीं कक्षा में पढ़ रही होती है, तभी उस के शरीर में बदलाव आना शुरू होते हैं. वह खुद अपने शरीर में आ रहे बायोलौजिकल बदलाव को समझना शुरू करती है.