हम तीनों बहनों की शादियां हो चुकी हैं. कोई बेटा न होने के कारण मां अकेली रहती हैं. इसलिए 4 दिन बाद होने वाले मोतियाबिंद के आपरेशन के पश्चात मां की देखभाल करने की समस्या का हल ढूंढ़ना जरूरी था. इस विषय पर मैं ने अपनी मझली बहन नीरजा से फोन पर बात की.

‘‘डाक्टर गुप्ता ने मां की आंख का आपरेशन करने के लिए 4 दिन बाद की डेट दे दी है. मेरे लिए तो 1 दिन से ज्यादा छुट्टी लेना असंभव है, क्योंकि आफिस में सालाना क्लोजिंग का काम चल रहा है,’’ वार्त्तालाप के आरंभ में ही मैं ने यह बात साफ कर दी कि मैं मां की देखभाल के लिए उन के साथ नहीं रह पाऊंगी.

‘‘फिर मां की देखभाल कैसे होगी? तुम्हें तो पता है कि मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती है,’’ नीरजा की आवाज में फौरन चिढ़ व गुस्से के भाव उभरे.

‘‘मां की देखभाल के नाम पर तुझे एकदम से अपनी बीमारी याद आ गई. और सब जगह घूमनेफिरने में तेरी बीमारी रुकावट क्यों नहीं डालती?’’

‘‘मजबूरी में तो तुम भी छुट्टी ले ही सकती हो. पिछले साल

इन्हीं क्लोजिंग के दिनों में तुम जीजाजी के साथ मलयेशिया घूम कर

आईं न.’’

‘‘मलयेशिया घूमने का मौका तो इन के आफिस वालों की तरफ से मुफ्त में मिला था. उसे छोड़ देना तो नासमझी होती बहना.’’

‘‘मैं तुम से झगड़ी तो मेरे सिर का दर्द जानलेवा हो जाएगा. क्या तुम्हारी इस बारे में नेहा से बात हुई है?’’ नीरजा ने वार्त्तालाप को हमारी छोटी बहन की तरफ मोड़ दिया.

‘‘मैं उसे अभी फोन करूंगी, पर क्या फायदा होगा उस से इस बारे में कोई बात करने का? तुझे लगता है कि उस की सास उसे मां की देखभाल के लिए मायके आने की इजाजत देंगी?’’

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