‘‘इतना लापरवाह कोई कैसे हो सकता है? मैं बता रहा हूं, यह ऐसे ही गैरजिम्मेदार रहा न तो फिर जीवन के हर मोड़ पर हमेशा गिरता रहेगा और संभालने के लिए हम वहां नहीं होंगे,’’ आशीष अपने 15 साल के बेटे वैभव पर चिल्ला रहा था.

2 दिन बाद वैभव की 10वीं कक्षा की परीक्षा शुरू होने वाली थी और उस ने प्रवेशपत्र खो दिया था. वैभव रोआंसा सा चुपचाप खड़ा था. वह बारबार याद कर रहा था कि उस ने तो प्रवेशपत्र लैमिनेट करवाया था फिर रमन और आकाश के साथ औटो में बैठ कर सीधे घर आ गया था. अनजाने में ही सही, गलती तो हुई थी. पूरा दिन अपनी फाइल ढूंढ़ता रहा, लेकिन कहीं पता न चला.

तभी उसे याद आया कि उस के हाथ में बैग और फाइल थी, जिस कारण गलती से फाइल शायद औटो में ही छूट गई होगी. काश, उस ने फाइल अपने बैग में रखी होती तो पापा से इतनी जलीकटी नहीं सुननी पड़ती. उस ने डर के मारे यह बात पापा को नहीं बताई.

आशीष ने फैसला किया कि वह वैभव के स्कूल जा कर इस बारे में प्रिंसिपल से बात करेगा. शायद कोई समाधान निकल आए और वैभव को परीक्षा में बैठने की अनुमति मिल जाए. लता ने भी सहमति जताई. दोनों स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगे तभी दरवाजे की घंटी बजी. लता ने दरवाजा खोला तो सामने बहुत ही अजनबी महिला खड़ी थी.

‘‘जी... कहिए?’’ लता ने पूछा.

‘‘क्या यह आशीषजी का घर है?’’ महिला ने पूछा.

‘‘जी... हां,’’ लता ने उत्तर दिया.

‘‘आप... मैं ने पहचाना नहीं,’’ लता ने सकपकाते हुए कहा.

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