13  बरस की मासूम उम्र में मासिकधर्म का शुरू होना बच्चियों के जीवन की अनूठी घटना है. खेलनेकूदने और पढ़ने के बीच महीने के 5 दिन दर्द, तनाव, शर्म और कई बातों से अनभिज्ञता के बीच बिताने वाली बच्चियां अकसर मासिकधर्म के दौरान स्वच्छता का पूरा ध्यान नहीं रख पाती हैं, जिस के कारण वे अनेक बीमारियों का शिकार हो जाती हैं.

यद्यपि मासिकधर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन अभी भी भारतीय समाज में मासिकधर्म को अपवित्र या गंदा माना जाता है. इसे कई गलत धारणाओं और प्रथाओं से जोड़ दिया गया है, जो महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं.

दुनियाभर में लाखों महिलाओं और लड़कियों को पीरियड्स होने के कारण स्टिग्मा झेलना पड़ता है. मासिकधर्म के दौरान महिलाओं पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं. उन के साथ भेदभाव किया जाता है. उन्हें गंदे वातावरण और स्वच्छता का पालन नहीं करने के लिए मजबूर किया जाता है. कुछ घरों में उन के किचन में आने या खाना बनाने अथवा खाने को छूने पर रोक होती है. यह भ्रांति फैली हुई है कि पीरियड्स के दौरान अगर महिला अचारचटनी को हाथ लगा दे तो वह सड़ जाता है. पीरियड्स के दौरान लड़कियों को नहाने से रोका जाता है. महिला शादीशुदा है तो कई घरों में वह पति के साथ एक बिस्तर पर नहीं सो सकती. नीचे चटाई आदि बिछा कर सोती है.

सुरक्षा से खिलवाड़

गांवदेहातों में कई जगह आज भी पीरियड्स आने पर महिला को 5 दिन घर के बाहर छोटी सी कुटिया में रहने के लिए मजबूर किया जाता है, जहां वह मासिकस्राव को सोखने के लिए पुराने कपड़े और सूखी घास के पैड बना कर इस्तेमाल करती है. 5 दिन वह किसी से मिल नहीं सकती है. जमीन पर सोती है. स्वयं अपना खाना बनाती है. उसे स्नान करने की मनाही होती है.

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