‘‘हमारी बहू के कदम तो बड़े ही शुभ हैं. घर में पड़ते ही सभी की किस्मत चमक उठी,’’ सीमा आंटी यह बात अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों को दिन में कम से कम 10 बार तो जरूर सुनाती थीं.

1 महीना हो गया था सोहन और गौरी की शादी हुए. सोहन ने भी क्या किस्मत पाई थी, जो गौरी जैसी सलीकेदार, पढ़ीलिखी दुलहन मिली. सोहन खुद कई बार फेल होने के बाद बड़ी मुश्किल से 12वीं कक्षा पास कर पाया था. ऐसे लड़के को भला कौन सी नौकरी मिलने वाली थी? यह तो सिफारिश से चिपकाने के लायक भी नहीं था.

मनोज अंकल कमिश्नर के सैक्रेटरी के पद पर थे. उन्होंने बहुत कोशिशों के बाद गांव में रास्ता बनवाने का ठेका अपने बेटे को दिलवाया तो कहने को सोहन कमाऊ बेटा हो गया. लेकिन ठेकेदारी से हाथ में थोड़ाबहुत पैसा क्या आ गया, सोहन लड़कियों के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगा.

मनोज अंकल व सीमा आंटी को उस की चिंता होने लगी. उन्होंने सोचा, वैसा ही किया जाए जैसा हमारे समाज में ज्यादातर मांबाप करते हैं. उस की शादी कर दी जाए तो घर के खूंटे से बंधा रहेगा. लेकिन जानपहचान में, रिश्तेदारी में कोई भी अपनी लड़की सोहन को देने के लिए राजी नहीं था

तब मनोज अंकल ने गांव से दूर गौरी नाम की लड़की ढूंढ़ी, क्योंकि इतनी दूर सोहन के गुणों के बारे में कोई नहीं जानता था. गौरी के पिता उस गांव के वैद्य थे. जड़ीबूटियों से लोगों का इलाज करते थे. लोग उन की बड़ी इज्जत करते थे.

सोहन हर लिहाज से नालायक वर था सिवा एक चीज के और वह थी उस की खूबसूरती. उस का बोलचाल का तरीका भी एकदम भिन्न था. उस के तौरतरीके इतने अच्छे थे कि सामने वाला धोखा खा जाए और गौरी के पिता भी धोखा खा गए.

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