फैशन और उस की दुनिया हर साल बदलती रहती है और इसे आकार देते हैं डिजाइनर्स, जिस का लाभ विलुप्त होने वाली कला और छोटेछोटे कारीगरों को भी होता है. असम, गुजरात, बंगाल, राजस्थान आदि सभी राज्यों से अलगअलग कारीगरी की अद्भुत मिसाल देखने को मिल सकती है, जिस में खादी सिल्क, रा सिल्क, सूती आदि गरमी के हिसाब से पहने जाने वाली पोशाकें होती हैं. ऐथनिक पोशाकें जिन्हें डिजाइनर मोटिफ्स, कढ़ाई फ्लेयर्स के अलावा आधुनिक गहनों से गौर्जियस लुक दे रहे हैं अब भी लोकप्रिय हैं.
अधिकतर कपड़े स्थानीय पहनावे को देखते हुए पहने जाएं तो बदन को बहुत आराम मिलता है. आम महिलाएं इन्हें पहन कर सहज रहती हैं. आज की युवतियां पारंपरिक परिधान के साथ मौडर्न लुक को अधिक प्राथमिकता देती हैं. वे वस्त्रों की ऐस्थैटिक वैल्यू को देखते हुए कंफर्ट पर भी ध्यान देती हैं. गुजरात के कच्छ की शिल्पकारी भी बहुत उम्दा होती है, जिस में वहां का पारंपरिक क्राफ्ट आरी, मुक्को, नेरण, राबारी, सूफ आदि शामिल होता है.
लाजवाब खूबसूरती
असम की मेखला चादोर असम की खूबसूरती को दिखाते हुए असम सिल्क के बारे में लोग जानते हैं पर बहुत कम लोग ही असम सिल्क को अच्छी तरह पहचानते हैं. लोग एक तरह की डिजाइन को देख कर ऊब जाते हैं इसलिए हमेशा नया खोजते हैं. नई मोटिफ्स और डिजाइन से मेखला चादोर पर बहुत ऐक्सपैरीमैंट हो रहे हैं. कुछ पोशाक साड़ी की तरह दिखती हैं और उन्हें पहनना भी बहुत आसान है.
बड़ी चुनौती तो बुनकरों की होती है, जिन्हें बहुत कम पैसा मेखला बुनने के बाद मिलता है. इसलिए उन के परिवार के लोग इस काम से निकल कर नौकरी करने लगे हैं. मेखला हैंडलूम प्रोडक्ट है और 1 को बनाने में 35 से 40 दिन लगते हैं.