कोचिंग से आ कर नवेली बिस्तर पर गुमसुम निढाल सी पड़ गई थी. ‘‘क्या हुआ निवी, मेरी बच्ची, थक गई? तेरा मनपसंद बादाम वाला दूध तैयार है, बस, गरमगरम पी कर सो जा एक घंटे,’’ 65 वर्षीय दादी तिलोतमा ने पोती नवेली को प्यार से उठाया तो गरमगरम आंसू उस के गालों पर ढुलकने लगे.

‘‘कुछ नहीं दादी, मुझे अब पढ़ना नहीं है. मुझ से इतनी पढ़ाई नहीं होगी, मैं पापामम्मी की आशाओं को पूरा नहीं कर सकती दादी. मैं राजीव अंकल की बेटी अंजलि की तरह वह परसैंटेज नहीं ला सकती चाहे लाख कोशिश करूं.’’

‘‘अरे, तो किसी के जैसा लाने की क्या जरूरत है? अपने से ही बेहतर लाने की कोशिश करना, बस.’’

‘‘पर पापामम्मी को कौन समझाए दादी, वे हर वक्त मुझे उस अंजलि का उदाहरण देते रहते हैं. घर आते ही शुरू हो जाती हैं उन की नसीहतें, ‘कोचिंग कैसी रही, सैल्फ स्टडी कितने घंटे की, कोर्स कितना कवर किया, कहां तक तैयारी हुई. आधे घंटे का ब्रेक ले लिया बस, अब पढ़ने बैठ जा. एग्जाम के बाद बड़ा सा ब्रेक ले लेना. देखो, अंजलि कैसे पढ़ती रहती है, मछली की आंख पर ही अभ्यास करती रहती है हर समय.’ वही घिसेपिटे गिनेचुने शब्द बस, इस के अलावा कोई बात नहीं करते,’’ वह दादी की गोद में सिर रख कर रो पड़ी.

तिलोतमा सब जानती थीं. कई बार उन्होंने पहले भी बेटाबहू से इस के लिए कहा था. आज फिर टोक दिया...

‘‘अरे, निवी से तुम सब खाली यही बातें करोगे? एक तो वह पहले ही कोचिंग से थकी हुई आती है, घर में भी बस पढ़ाईपढ़ाई, कुछ और बातें भी तो किया करो ताकि दिमाग फ्रैश हो उस का.’’

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