‘‘ऐसेकैसे किसी भी लड़की से शादी की जा सकती है? कोई मजाक है क्या?
जिसे न जाना न समझ उस के साथ जिंदगी कैसे निभ सकती है?’’ मयंक अपनी मां सुमेधा पर झंझलाया.
तभी पिता किशोर बातचीत में कूद पड़े, ‘‘जैसे हमारी निभ रही है,’’ किशोर ने प्यार से पत्नी की तरफ देखते हुए कहा तो गोरी सुमेधा गुलाबी हो गई.
मयंक से उन की यह प्रतिक्रिया कहां छिप सकी थी. यह अलग बात है कि उस ने अपनी अनदेखी जाहिर की.
‘‘आप तो बाबा आदम के जमाने के दिव्य स्त्रीपुरुष हो. वह सेब आप दोनों ने ही तो खाया था. आप का मुकाबला यह आज के जमाने का तुच्छ मानव नहीं कर सकता,’’ मयंक ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर जिस नाटकीय अंदाज में अपना ऐतराज दर्ज कराया उस पर किसी की भी हंसी छूटना स्वाभाविक था.
‘‘तो ठीक है करो अपनी पसंद की लड़की से शादी. हमें बुलाओगे भी या किसी दिन सामने ही ला कर खड़ी कर दोगे,’’ सुमेधा चिढ़ कर बोली तो मयंक नाक सिकोड़ कर गरदन झटकता हुआ अपने कमरे में घुस गया.
यह आज का किस्सा नहीं है. यह तो एक आम सा दृश्य है जो इस घर में पिछले 2 सालों से लगभग हर महीने 2 महीने में दोहराया जा रहा है. सुमेधा और किशोर का बेटे पर शादी करने का दबाव बढ़ता ही जा रहा है. वैसे उन का ऐसा करना गलत भी नहीं है.
‘‘तीस का होने जा रहा है. अभी नहीं तो फिर कब शादी करेगा? शादी के बाद भी तो
कुछ साल मौजमजे के लिए चाहिए कि नहीं? फिर बच्चे कब करेगा? एक उम्र के बाद बच्चे होने में भी तो दिक्कत आने लगती है. फिर काटते रहो अस्पतालों के चक्कर और लगाते रहो डाक्टरों के फेरे. चढ़ाते रहो अपनी गाड़ी कमाई का चढ़ावा इन आधुनिक मंदिरों में,’’ सुमेधा गुस्से से बोली.