समलैंगिक जोड़े सुप्रीम कोर्ट से मुंह लटका कर चले आए हैं कि उन्हें विवाह कर के विवाह जैसे एकदूसरे से, समाज से व सरकार से वह कानूनी प्रोटैक्शन नहीं मिला जो वैवाहिक स्त्रीपुरुष जोड़ों को मिलता है.

सदियों से विवाह पर सरकार और धर्म ने इस तरह का फंदा बुन रखा है कि उस के बाहर विवाह की कल्पना की ही नहीं जा सकती और यही सुप्रीम कोर्ट ने किया जबकि दुनिया के कितने ही देशोें में समलैंगिक विवाह न केवल कानूनी हो गए हैं, उन से न कोई विशेष विवाद उठ रहे हैं और न समाज की चूलें हिल रही हैं.

धर्म हर जगह रखवाला बन कर खड़ा हो जाता है. कहने को वह संरक्षण देता है पर असल में वह रंगदारी करता है कि मुझे पहले पैसे दो फिर विवाह करो, संतान करो, घर बनाओ, घर में घुसो, कार खरीदो, नाम रखो, स्कूल पढ़ने जाओ, रोज का खाना खाओ. हर मामले में पहले धर्म को याद करो, उसे रंगदारी देने का वादा करो या दो और तभी आगे बढ़ो.

धर्मों ने अभी तक सेम सैक्स मैरिज को नहीं स्वीकारा क्योंकि यहां रंगदारी ज्यादा से ज्यादा एक बार मिलेगी. शादी के समय. ऐसे जोड़े आपस में खुश रह सकते हैं, 40-50 साल साथ जी सकते हैं, पर चूंकि उन्हें बच्चे नहीं होंगे उन्हें बच्चों के जन्म, नामकरण या विवाह जैसे संस्कारों में घुसने का मौका नहीं मिलेगा, वे सेम सैक्स मैरिज का विरोध कर रहे हैं.

सेम सैक्स संबंध को मैरिज के कानूनी रूप की मांग सिर्फ इसलिए की जा रही है कि धर्म के इशारों पर सरकारों ने शादी के बाद बहुत से अधिकार पतिपत्नी को एकदूसरे पर दिए हैं. पति के न होने पर पत्नी संपत्ति की मालिक  स्वत: बन जाती है, बच्चों को अपनेआप मांबाप का नाम मिल जाता है, एक साथी दूसरे वैवाहिक साथी को रिप्रैजेंट कर सकता है, अस्पतालों में नैक्स्ट औफ किन वैवाहिक साथी ही होता है, अविवाहित साथ नहीं.

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