कालेज की पढ़ाई खत्म हो गई. संजना बीए पास तो कर गई लेकिन सिर्फ 45त्न ही अंक आए. मध्यवर्गीय परिवार की संजना घर ही बैठी थी. आजकल सभी लड़कियां नौकरी करती हैं. अत: उस ने भी नौकरी के लिए अप्लाई करना शुरू कर दिया.
रिजल्ट आए 1 महीना बीत चुका था. 1-2 जगह इंटरव्यू भी दिए लेकिन नौकरी नहीं मिली. न कोई अनुभव और न कोई सिफारिश. ऐसे में थर्ड डिविजन पास सिंपल ग्रैजुएट को अच्छी नौकरी मिलती नहीं.
कालेज में संजना की दोस्ती तन्मय से थी. मौजमस्ती के साथ दोस्ती नजदीकी में बदल गई. दोनों एकदूसरे से प्रेम के बंधन में बंध चुके थे. दोनों आपस में विवाह करेंगे. संजना खूबसूरत थी, तन्मय उस का साथ पा कर खयालों में गुम था, एक दिन दोनों का विवाह होगा.
जो हाल संजना का था, वही तन्मय का भी था. थर्ड डिविजन में पास होने वाले दोनों की आगे पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी. दिल्ली यूनिवर्सिटी में तो एडमिशन कहीं मिलना नहीं था. नौकरी ही एकमात्र लक्ष्य हो गया. रविवार के दिन दोनों साकेत में स्थित सिटी मौल में मिले. थोड़ी देर घूमे. विंडो शौपिंग करते रहे और फिर बाहर एक खाली जगह बैठ गए. ‘‘फिल्म देखेगी?’’
तन्मय के इस प्रश्न पर संजना ने उसे घूर कर देखा, ‘‘महीने का आखिर है. पौकेट मनी खत्म हो गई है. बड़ी मुश्किल से क्व500 मां से मांग कर यहां आई हूं. तेरे पास रुपए हैं तो दिखा दे. मेरी आज मूवी के क्व400 के टिकट लेने की हैसियत नहीं है. मां ने मुंह फाड़ कर सुना दिया कि रुपयों का करना क्या है. घर बैठ कर कहां उड़ाती है?’’
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