महिला पहलवानों ने खुल्लमखुल्ला सड़कों पर उतर कर भारतीय कुश्ती संघ के पूर्र्व अध्यक्ष बृजभूषण सिंह के खिलाफ सैक्सुअल हैरेसमैंट के आरोपों पर भारतीय जनता पार्टी के कानों पर महीनों जूं तक नहीं रेंगी. शायद वह महिला पहलवानों को नीची जाति की औरतें समझ कर उन्हें इस लायक नहीं समझ रहे थी कि एक सनातन तिलकधारी सांसद के खिलाफ कुछ किया जाए जो भक्त भी पैदा करता है और वोट भी बटोरता है.
बड़ी मुश्किल से वह संघ से निकाला गया. सरकार ने वर्ल्ड रैसलिंग फैडरेशन की ‘रैसलिंग फैडरेशन औफ इंडिया’ की मान्यता को खत्म करने के बाद मरे दिल से यह कदम उठाया पर बृजभूषण सिंह का दबदबा कायम रहा और ‘रैसलिंग फैडरेशन औफ इंडिया’ के चुनावों में बृजभूषण सिंह फिर छा गया. उस के घर से चल रहा रैसलिंग फैडरेशन बृजभूषण सिंह के दोस्त के ही हाथों में गया और वह भी 47 में से 40 वोटों से.
हार कर पहलवानों ने रैसलिंग से रिटायर होने की घोषणा करनी शुरू कर दी, पदक लौटाने शुरू कर दिए. ये टोकन स्टैप हर उन अखबारों में भी सुर्खियां बनने लगे जो भाजपा समर्थक हैं. अब भाजपा को होश आया है और उस ने स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री के माध्यम से इस नए चुने पैनल को सस्पैंड कर दिया है.
रैसलर्स के कुछ आंसू तो पोंछे गए हैं पर यह समझ लें कि यह कदम केवल मई, 2024 तक के लिए चुनावों में भाजपा विपक्ष को कुछ कहने के लिए एक मुद्दा नहीं देना चाहती. वह नहीं चाहती कि राम मंदिर के उद्घाटन के समय शनि का कोई काला साया भाजपा पर पड़े. वह केवल कुछ समय चाहती है.
रैसलर्स या कुश्ती हमारे देश में जागीरदारों और अमीरों का प्रिय खेल रहा है पर वे खुद नहीं खेलते थे. वे खिलवाते थे और देखते थे. आज भी स्थिति बदली नहीं है. रैसलर पहलवान धन और धर्म की रक्षा का काम करते थे, करते हैं और करते रहेंगे. वे और कुछ ज्यादा न सोचें, यह संदेश साफ है. रही बात सैक्सुअल हैरेसमैंट की तो न भूलें कि इंद्र ने अहिल्या को छला और दोषी अहिल्या थी, द्रौपदी को जूए पर लगाया गया और युधिष्ठिर अपराधी नहीं थे, प्रेम निवेदन पर शूर्पणखा की नाक कटी थी, नाक काटने वाला दोषी नहीं था. बृजभूषण सिंह कुछ समय के लिए पद और प्रभाव त्याग रहा है, वनवास मिला है, फिर लौटेगा उसी दमखम से.