‘‘डाक्टरसाहब...’’ पीछे से किसी ने आवाज दी. मुड़ कर देखा तो 22-23 वर्ष की एक युवती हाथ के संकेत से किसी को बुला रही थी. भीड़ भरा रास्ता था. मैं यह जानने के लिए इधरउधर देखने लगा कि वह किसे बुला रही है.
‘‘अरे साहब, मैं आप को ही बुला रही हूं,’’ वह जरा तेज आवाज में बोली.
अगलबगल के लोग कभी उसे और कभी मु झे घूरने लगे. उस के कटे बाल, बिना बांहे का ब्लाउज, शिफौन की साड़ी और दमकता हुआ इकहरा बदन किसी को भी आकर्षित करने के लिए काफी था. मेरे कदम उस की ओर बढ़ गए. करीब जा कर देखा तो पहचान गया. खुशी से बोला, ‘‘तो आप हैं?’’
‘‘तो आप क्या सम झे थे?’’ वह हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘इतने दिनों बाद मिले हैं, छोड़ूंगी नहीं. चलिए, घर चल कर बातें करेंगे.’’
मैं खुद भी उस से बातें करने को उत्सुक था. कई बातें थीं जो उसे देखते ही मन में घुमड़ने लगी थीं.
‘‘बैठिए,’’ कार का दरवाजा खोल कर उस ने पहले मु झे बैठाया, फिर खुद चालक की सीट पर बैठ कर बोली, ‘‘रास्ते में बातें न करना क्योंकि मैं ने हाल ही में कार चलानी सीखी है. कहीं ध्यान बंट गया तो दुर्घटना हो जाएगी.’’शद्मरू
उस से मेरी पहली मुलाकात पटना मैडिकल कालेज के अस्पताल में हुई थी. यह 16 साल पहले की बात है. मैं प्लास्टिक सर्जरी विभाग में हाउस सर्जन था. एक दिन वार्ड मेें प्रवेश करते ही मेरी निगाह पलंग नंबर 2 पर बैठी एक नई मरीज पर ठहर गई. वह कोई 12-13 साल की किशोरी थी. मैं सीधा उसी के पास पहुंचा.