हमारे यहां संयुक्त परिवार की बड़ी महत्ता गाई जाती है. ज्यादातर हिंदी धारावाही जौइंट फैमिली के किरदारों के चारों ओर घूमते हैं जिन में 1 सास, 2-3 बहुएं, ननदें, ननदोई, देवरदेवरानियां और कहींकहीं ताड़का समान एक विधवा बूआ या चाचीताई भी होती है. इन धारावाहियों में ही नहीं, असल जीवन में भी औरतों का ज्यादा समय इस तथाकथित जौइंट फैमिली को तोड़ने में लगता है. हम शायद जौइंट परिवार को तोड़ने की प्रक्रिया का एक अर्थ सम?ाते हैं और जब यह जौइंट परिवार टूट जाता है, दीवारें खड़ी हो जाती हैं, नजदीकी रिश्तों में अनबोला हो जाता है तो ही सुखी परिवार बनता है.

यह आम परिवार की ही कहानी नहीं, यह पूरे देश की कहानी है. इस देश की पौराणिक कहानियों को लें या उस इतिहास को लें जो अंगरेजों के बाद बौद्ध व मुसलिम लेखकों द्वारा लिखा गया और उन पांडुलिपियों के आधार पर तैयार किया गया जो सदियों से भारत भूमि से बाहर के मठों, मसजिदों में थीं. उन में भी हमारे यहां निरंतर तोड़ने की प्रक्रिया का दर्शन होता है.

अब यह रुक गया है क्या? टूटने की प्रक्रिया प्राकृतिक है. हर पेड़ टूटता है पर वह अपने टूटने से पहले कई नए पेड़ों को जन्म दे देता है. हमारे यहां टूटने के बाद अंत हो जाता है. रामायणकाल की कथा परिवार के टूटने के बाद खत्म हो जाती है. महाभारत में अंत में सब खास लोग युद्ध में मारे जाते हैं या फिर पहाड़ों में जा कर मर जाते हैं.

दोनों कथाओं में पारिवारिक विघटन ही केंद्र में है. उस युग की कोई चीज विरासत में हमें मिली है तो वह परिपार्टी है जिस में समय से पहले तोड़ने, पार्टीशन करने और पार्टीशन से पहले लंबे दुखदायी संघर्ष की ट्रेनिंग दी जाती है.

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