'निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।' सदियों पहले संत कबीर दास जी ने एक लाइन में हमें समझा दिया था कि जीवन में निंदा यानी आलोचना भी उतनी ही जरूरी हैं, जितनी कि अच्छाइयां और तारीफें.आलोचनाएं न सिर्फ हमें गलतियों को सुधारने का मौका देती हैं, बल्कि ये हमें कुछ नया भी सिखाती हैं.हालांकि अब समय बदल गया है लोग अपनी गलतियों पर भी आलोचना सुनना पसंद नहीं करते हैं.कुछ लोग तो इसे दिल पर लगा लेते हैं.वहीं कुछ इसे पर्सनल अटैक समझकर लड़ाई झगड़े तक पहुंच जाते हैं.लेकिन क्या आप जानते हैं आलोचना, निंदा या क्रिटिसाइज होना भी जिंदगी का जरूरी हिस्सा है.इसके कई फायदे हैं, बस आपको इससे डील करना आना चाहिए।

आलोचना से बनेंगे अनुभवी

ये बात सच है कि अपनी तारीफ सुनना सभी को पसंद होता है, लेकिन अगर आपसे बड़ा, अनुभवी और समझदार शख्स आपकी आलोचना करता है तो आप अपनी गलती जानने की और उसे स्वीकारने की कोशिश करें.इससे आपको अपनी गलती का पता चलेगा और आप उसे सुधार पाएंगे.यह आपके पर्सनालिटी डेवलपमेंट के लिए जरूरी कदम है.ऐसे ही आप जीवन में अनुभवी बन पाएंगे।

पॉजिटिव सोच और एटिट्यूड जरूरी

कई बार लोग अपनी आलोचना से इस कदर दुखी हो जाते हैं कि उनका सारा दिन खराब हो जाता है.उनका किसी काम में मन नहीं लगता और वह अपनी आलोचना के बारे में ही सोचते रहते हैं.इससे उनके बाकी काम भी बिगड़ जाते हैं.इसलिए अपनी सोच हमेशा पॉजिटिव रखें.सामने वाले की बात को समझने की कोशिश करें.इससे आप सिक्के के दोनों पहलू देख पाएंगे.यही पॉजिटिव सोच और एटिट्यूड आपको जिंदगी में आगे लेकर जाएगा.

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