शाम के 7 बज चुके थे. सर्दियों की शाम का अंधेरा गहराता जा रहा था. बस स्टैंड पर बसों की आवाजाही लगी हुई थी. आसपास के लोग भी अपनेअपने रूट की बस का इंतजार कर रहे थे. ठंडी हवा चल पड़ी थी. हलकीफुलकी ठंड शालू के रोमरोम में हलकी सिहरन पैदा कर रही थी. वह अपनेआप को साड़ी के पल्लू से कस कर ढके जा रही थी.

शालू को सर्दियां पसंद नहीं है. सर्दियों में शाम होते ही सन्नटा पसर जाता है. उस पसरे सन्नाटे ने ही उस के अकेलेपन को और ज्यादा पुख्ता कर दिया था. सोसाइटी में सौ फ्लैट थे. दूर तक आनेजाने वालों की हलचल देख दिन निकल जाता लेकिन शाम होतेहोते वह अपनेआप को एक कैद में ही पाती थी. उस कैदखाने में जिस में मखमली बिस्तर व सहूलियत के साजोसामान से सजा हर सामान होता था. वह अकेली कभी पलंग पर तो कभी सोफे पर बैठी मोबाइल पर उंगलियां चलती तो कभी बालकनी में खड़ी यू आकार में बने सोसाइटी के फ्लैटों की खिड़कियों की लाइटें देखती जो कहीं डिम होतीं तो कहीं बंद होतीं. चारों तरफ सिर्फ सन्नाटा होता था.

सोसाइटी के लौन में दोपहर बाद बच्चों के खेलनेकूदने के शोर से उस सन्नाटे में जैसे हलचल सी नजर आती. वह भी रोजाना लौन में वाक के लिए चली जाती और कुछ देर हमउम्र पास पड़ोसिनों के साथ अपना वक्त गुजार आती. फिर भी शाम की चहलपहल के बाद सिर्फ सन्नाटा ही होता. अपने शाम के खाने की तैयारी के बाद भी उस के पास होता सिर्फ रोहन का इंतजार. वह जैसेजैसे अपनी उन्नति की सीढि़यां चढ़ रहा था वैसेवैसे उस का घर के लिए वक्त कम होता जा रहा था. कई बार उस ने शिकायत की लेकिन रोहन उसे एक ही बात कहता, ‘‘शालू, तुम नहीं सम?ागी बौस बनना आसान नहीं है. प्राइवेट सैक्टर है इतनी सहूलियत हमें कंपनी इसीलिए ही देती है कि हम टाइम पर काम करें.’’

रोहन की बातों पर शालू चुप हो जाती थी और उस छोटी सी बहस के बाद दोनों के बीच कोई वार्त्तालाप न होता. रात रोहन अपने लैपटौप पर कुछ न कुछ औफिशियल काम करने लगता. न जाने कब सोता. रोज की यही दिनचर्या थी, उस की. उस के बाद कभीकभी तो रोहन हफ्ते 15 दिन के टूर से लौटता और कभी विदेश जा कर महीनेभर बाद लौटता. इस दौरान शालू अकेली ही रहती. कभीकभी अपनी सहेलियों से, पासपड़ोसियों से मिल आती लेकिन इन सब से कब तक उस का वक्त गुजरता. उसे अपनी सहेलियों को उन के परिवार व पति के साथ देख खुशी तो होती साथ ही जलन भी होती. उस के घर की चारदीवारी में तनहाई और अकेलापन उस के मन को रीता किए जा रहा था.

आजकल दोनों में काम की बात ही होती थी. पहले सी आपसी नोक?ांक, हंसीमजाक भी अब बंद हो गया था. कभीकभी रोहन उसे पार्टी में व बाहर ले कर जाता था. वह कभी गलत राह पर भी नहीं था यह शालू को विश्वास था लेकिन उस के पास उस के लिए भी तो वक्त नहीं था.

एक दिन शालू ने रोहन को अपनी सहेली की ऐनिवर्सरी पार्टी में चलने को कहा. रोहन के साथ चलने की हां भरने पर ही वह बड़े शौक से रोहन की पसंद की शिफौन की गुलाबी साड़ी पहन तैयार हुई. बाल भी खुले रखे साथ में पर्ल सैट पहन उस ने उस दिन अपनेआप को दर्पण में बारबार निहारा. आज काफी अरसे बाद वह रोहन के साथ अपनी सहेलियों के बीच जा रही थी वह बहुत खुश थी लेकिन धीरेधीरे शाम से रात हो गई. वह रोहन का इंतजार करती रही. फोन करती तो स्विच्ड औफ. न जाने कब रोहन का इंतजार करतेकरते उस की सोफे पर ही आंख लग गई.

रात 12 बजे रोहन ने घर की बैल बजाई तो उस ने अपनी सूजी हुई लाल आंखों को छिपाते हुए गेट खोल दिया. अपने सामने शालू को तैयार देख रोहन को याद आया कि उसे तो आज शालू की फ्रैंड की ऐनिवर्सरी में जाना था. वह शालू को देखते ही बोला, ‘‘ओह सौरी शालू, मीटिंग लंबी चली… मैं तुम्हे कौल भी नहीं कर पाया.’’

रोहन को उस दिन शालू ने कुछ न कहा. गेट खोलकर वह कमरे में चली गई और चेंज कर बिस्तर पर औंधे मुंह लेटी रही. न जाने कितनी बार रोहन ने बात करने की कोशिश की लेकिन शालू आज बुत बनी थी.

सुबह शालू चुपचाप नाश्ता बना कर पैकिंग में लग गई. रोहन औफिस के लिए

निकलने लगा तो उस ने पूछा, ‘‘यह पैकिंग… तुम कहीं जा रही हो?’’

शालू ने कहा, ‘‘हां, मायके.’’

रोहन रात की बात याद कर बोला, ‘‘सौरी, वह कल टाइम ही नहीं मिला. शालू प्लीज.’’

‘‘रोहन अब तुम्हारी सौरी और प्लीज से मैं थक चुकी हूं. मु?ो जाने दो,’’ उस दिन वह रोहन के घर से अकेले निकल पड़ी थी. उस ने बहुत रोका लेकिन अब शायद उस की बरदाश्त से बाहर था वहां रुकना.

मायके पहुंची तो अचानक उसे देख कर सब हैरान थे लेकिन वह सरप्राइज विजिट का नाम दे 15 दिन रुक गई. मगर धीरेधीरे मां को सब सम?ा आने लगा. उन्होंने शालू से पूछा तो वह हंस कर अपने दर्द को छिपा इतना ही कह पाई, ‘‘क्या, मैं यहां कुछ दिन अपनी मरजी से नहीं रुक सकती?’’

मां ने शालू की नजरों को पढ़ते हुए कहा, ‘‘बेटा रह तो सकती हो पर अब तुम्हारी मरजी के साथ रोहन की मंजूरी भी जरूरी है.’’

मां के इतना कहते ही शालू का छिपा दर्द उभर उठा और वह अपनी आंखों में भरे आंसुओं को मां के आगे रोक न सकी. अपनी उदासी व अपना अकेलापन बयां कर गई.

तब मां ने उसे बताया, ‘‘तुम्हारे आने के दूसरे दिन ही रोहन ने मु?ो फोन पर सब बता दिया. वह अपनी नौकरी के कारण तुम्हें समय नहीं दे पाता. उस का उसे भी दुख है लेकिन वह तुम्हारे बिना परेशान है. कुछ निर्णय जल्दबाजी में सही नहीं होते. बेटा. रात ही मेरी उस से बात हुई. तुम ने इतने दिनों में उसे फोन भी नहीं किया और उस का फोन भी अटैंड नहीं किया.

‘‘इतनी नाराजगी भी अच्छी नहीं. वह तुम्हें लेने आना चाहता है. वह जो कुछ कर रहा है पैसा कमाने के लिए ही तो कर रहा है. अभी तुम्हारी शादी को सालभर हुआ है तुम दोनों की पूरी जिंदगी पड़ी है. गृहस्थी में बहुत से त्याग करने पड़ते हैं… रोहन को कुछ समय दो बेटा, एकदूसरे का साथ दो.’’

कुछ देर बात कर मां उस के कमरे की मूनलाइट का स्विच औन कर जातेजाते उसे फिर एक बार सोचने के लिए कह गई. मूनलाइट की सफेद रोशनी में वह बिस्तर पर लेटी रोहन के साथ बीते पल याद करने लगी…

जब उसे बुखार हुआ तो रोहन ने औफिस की जरूरी मीटिंग भी कैंसिल कर दी थी और दिनरात उस का खयाल रखा था जैसे कोई किसी बच्चे का रखता है. उस वक्त जब वायरल फीवर से उस की नसनस में दर्द था उसे टाइमटाइम पर दवा, जूस सब देता. कितना खयाल रखता था और एक बार वह 10 दिन की कह कर मां के पास आई थी तो रोहन 5 दिन बाद ही आ कर उसे सरप्राइज दे शिमला ट्रिप प्लान कर आया था. दोनों बांहों में बांहें डाले शिमला की वादियों में घूमते रहे. तब दिनरात कब बीतते थे पता ही न चलता.

रोहन ने शालू की नाराजगी पर कभी जोर से बात नहीं की. वह हर बार उसे समझाने की कोशिश करता और सौरी भी कह देता लेकिन न जाने उसे ही धीरेधीरे क्या हो गया. उस ने चुप्पी साध ली. शालू रोहन की थकान को उस की बेरुखी सम?ाती थी जब वह कमरे में आ कर सो जाता. कभी सोचा ही नहीं कि घर से बाहर आराम कहां है और मैं ने उसे घर आने के बाद अपने प्यार के सहारे की जगह नाराजगी और चुप्पी ही दी. उस ने कभी कुछ न कहा. वह जिस प्यार को भूल बैठी थी वह फिर आज उस के दिल की परतों को हटा सहलाने लगा था. उस का रिश्ता प्यार के एहसास को बटोरने लगा था. उसे अपनी गलती का एहसास हो गया था. न जाने कैसे आहिस्ताआहिस्ता उस ने रोहन को अपनेआप से इतना दूर कर दिया. अब वह रोहन को और इंतजार नहीं करवाना चाहती थी.

‘‘यह लो, चाय पी लो. तुम्हें ठंड लग जाएगी बस आने वाली है. आधा घंटा बाकी है,’’ रोहन की आवाज से वह एकाएक वर्तमान में लौट आई. सामने 2 चाय के कप लिए रोहन मुसकरा रहा था. उसे देख कर वह भी मुसकरा दी. उस समय ऐसा लग रहा था जैसे दोनों के बीच कोई दूरी न हो, दोनों ने एकदूसरे को माफ कर दिया हो.

पास की बैंच पर बैठ कर दोनों ने चाय पी. शालू रोहन के हाथ में हाथ डाले उस के कंधे पर सिर रख बस का इंतजार करने लगी. कुछ ही देर में बस आ गई. रोहन ने बस में सामान रखा और बस में चढ़ने के लिए शालू का हाथ थाम लिया. बस चल पड़ी. दोनों एकदूसरे में खोए सफर तय कर रहे थे.

अब वे कभी न खत्म होने वाली राह पर चल पडे़ थे. रोहन के चेहरे पर शालू की बिखरी लटें अपना आधिपत्य जता रही थीं. शालू रोहन की अदा पर मंदमंद मुसकरा रोहन के आगोश में सिमटी जा रही थी. वह खुश थी कि आज रोहन ने उस के रीते मन की उल?ान को अपने प्रेम भरे साथ से सुल?ा दिया.

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