बच्चे के लिए दूध की बोतल तैयार करना, उस का नैपी बदलना, उसे गोद में लिए ही शौपिंग करना, यहां तक कि फिल्म देखना, ये सब काम ज्यादातर मां ही करती है. इसीलिए बच्चे का मां के साथ अलग ही भावनात्मक रिश्ता होता है. लेकिन पिता के साथ बच्चे का भावनात्मक रिश्ता बनाने में मां ही मदद करती है. तभी पिता और बच्चा करीब आ पाते हैं. जरमनी के नैटवर्क औफ फादर्स के चेयरमैन हांस जार्ज नेल्स भी कहते हैं कि साझा अनुभव, रीतिरिवाज, साथ बिताया सप्ताहांत और बिना मां की मौजूदगी वाली साझी अभिरुचियां पिता और बच्चे को करीब लाने का आधार बनती हैं. पिता को बच्चे से जुड़ने के लिए सब से पहले उस की मां के साथ सहयोग करना होता है. मां के साथ किया गया सहयोग पिता को बच्चे से जुड़ने में मददगार साबित होता है. यह बहुत जरूरी होता है कि जब बच्चा छोटा होता है तब मां उस का खयाल रखने में पिता पर भरोसा करे. तब पिता बच्चे के साथ मां से थोड़ा अलग तरह का रिश्ता कायम कर पाता है.
बच्चे की छोटीबड़ी बात में पिता को भी हिस्सेदार बनाती है मां:
बच्चे का हर काम यानी उसे नहलाने से ले कर खिलानेसुलाने तक का काम मां ही करती है. इसीलिए पिता बच्चे से थोड़ा दूर ही रहता है और दूर से ही उसे देख मुसकराता रहता है. लेकिन धीरेधीरे मां ही पिता को भी थोड़ी जिम्मेदारी निभाना सिखाती है जैसे यदि मां नहाने जा रही है तो बच्चे को पिता को सौंप जाती है. शुरू में पिता झिझकता और शर्म महसूस करते हुए बच्चे को पकड़ता है, लेकिन फिर आदत होने लगती है और वह थोड़ाथोड़ा वक्त बच्चे को देने लगता है. शुरू में पिता बच्चे की पौटी से नाकभौं सिकोड़ता है और तुरंत बच्चे को मां को सौंप देता है. लेकिन धीरेधीरे मां बच्चे के पिता से नैपी आदि बदलने में हैल्प लेने लगती है, तो पिता को भी इस की आदत हो जाती है. पिता भी बच्चे के प्रति अपनी भावनात्मक जिम्मेदारी समझने लगता है और इस तरह वह बच्चे से पहले से ज्यादा जुड़ जाता है. इस से पिता और बच्चे के बीच की दूरी कम होती है. पिता और बच्चे के बीच एक रिश्ता बन जाता है. बच्चा पिता के करीब रहने लगता है.