4 जून, 2024 को चौंकाने वाले नतीजों के आने पर उन भक्त सवर्ण, ऊंची जातियों की महिलाओं को खुशी मनानी चाहिए जो दिन में घंटों पूजापाठ में लगाती हैं, व्रतउपवास करती हैं, भजनकीर्तन गाती हैं, सड़कों पर कलश सिर पर रखे धूप, पानी, सर्दी में चलती हैं, पति को परमेश्वर मानती हैं. खुशी इसलिए मनानी चाहिए कि उन के मन पर बंधी और रोज नईनई बांधी जा रही जंजीरों के जनक की जड़ों के नीचे से थोड़ी सी जमीन खिसकी है.

ये औरतें वैसे अपने को धन्य मानती हैं कि उन्हें पूजापाठ का अवसर मिलता है, भगवानों के दर्शन होते हैं, माता की चौकी पर प्रसाद मिलता है, प्रवचनों में घंटों बैठने के बाद स्वामी के चरण छूने का अवसर मिलता है. असल में यह सब मानसिक गुलामी के कारण औरतें करती हैं और लगभग हर ऐस्टैब्लिश्ड धर्म में ऐसा होता है.

जिस प्रचारतंत्र से भारतीय जनता पार्टी ने देश में अपनी पकड़ बनाई थी, उस से कहीं ज्यादा पकड़ पार्टी को चलाने वालों की पीढि़यों ने सदियों से सवर्ण औरतों पर बना रखी थी. जब से राम मंदिर का मुद्दा ले कर भारतीय जनता पार्टी ने विधायक और सांसद बनाने शुरू किए हैं तभी से ऊंची जातियों की पढ़ीलिखी, पैसे वाली, मांबाप की दुलारी सैल्फकौन्फिडैंट औरतों को भी धर्म की जंजीरें नएनए ढंग से पहनानी शुरू कर दी हैं.

व्हाट्सऐप, फेसबुक, इंटरनैट, इंस्टाग्राम, ट्विटर का जम कर उपयोग कर के सत्ता में आते ही इन औरतों को वापस पौराणिक काल में ले जाने की तैयारी शुरू हो गई. मौडर्न ऐजुकेशन और शहरी ऐटमौसफियर की वजह से ये औरतें दिखावा तो इंडीपैंडैंस का करती थीं पर इन्हें जो पढ़ाया, सुनाया और दिखाया जाता था, उस में वह पौराणिकता भरी थी जो सती सावित्री, द्रौपदी, दमयंती, शकुंतला में थी.

इन औरतों में से बहुतों को तो अंगरेजी में पौराणिक ज्ञान परोसा गया. एअरकंडीशंड हौलों में प्रवचन व भजन कार्यक्रम कराए गए, हाईटैक देवीदेवता पेश किए गए क्योंकि इस सब के पीछे सरकार की सपोर्ट और फाइनैंस था. यही वजह है कि आज की पढ़ीलिखी युवतियां भी बेहद घुटनभरे माहौल में पति और बच्चों में उल?ा रहती हैं.

भगवा सरकार ने मंदिरों का कायापलट कर दिया ताकि औरतें घर से बाहर निकल कर मंदिर के साथ बने रेस्तरां में खाना खा सकें, हौल में कीर्तन कर सकें, मारबल के फर्श पर बैठ कर ध्यान लगा सकें.

1955-56 में जवाहर लाल नेहरू ने जो आजादी की डोर औरतों को हिंदू कानूनों में बदलाव ला कर दी थी वह मांबाप ने भुला डाली और हिंदू सवर्ण औरतों को मुसलमानों के 3 तलाक, बहुविवाहों में और जरूरत से ज्यादा बच्चों के सवालों में उल?ा दिया ताकि वे अपने पर सवाल न कर बैठें.

कांग्रेस ने इन चुनावों में स्त्री न्याय की कल्पना की थी. भाजपा का नारा था लाडली बहन और उज्ज्वला. भाजपा के एक नारे में भाई को प्रौमिनैंस दी गई तो दूसरे में औरतों को चूल्हे से बांध दिया गया है. यही तो पुराण व स्मृतियां कहती हैं, यही तो वे सारे प्रवचनकर्त्ता कहते हैं. भारतीय जनता पार्टी ने अपनी नीतियों में, वादों में कहीं भी औरतों को बराबर के हक दिलाने की बात नहीं की. बातें तो वैसे भी बेमतलब की होती हैं क्योंकि असलियत में जो किया जाता है वह महत्त्व का होता है.

भाजपा के दौरान महिला पहलवानों के विरोध को दबाया ही नहीं गया, उस के जनक के पुत्र को उत्तर प्रदेश में टिकट भी मिला और वह जीता भी. जो भी कानून आज औरतों को सुरक्षा दे रहे हैं वे बने 2014 से पहले ही थे. भाजपा तो धारा 370, कृषि कानूनों, जीएसटी कानूनों, नोटबंदी आदेशों, हिंदूमुसलिम विवाद बढ़ाने, लिव इन के अधिकार को कुचलने में व्यस्त रही.

हिंदू पर्सनल कानूनों में सुधार लाना तो दूर, जो थोड़ेबहुत सुधार पहले हुए थे उन के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करती रही क्योंकि पुराणों में स्पष्ट है कि सवर्णों की औरतों के पास भी कोई अधिकार नहीं है. हिंदू औरतों को बारबार सती, सीता, द्रौपदी, दमयंती, पद्मिनी की तरह त्याग करने को कहा जाता रहा, बारबार यह दोहराया जाता रहा है. इसे स्कूली टैक्स्ट बुक्स में ठूंसा जाने लगा.

4 जून, 2024 को एक  ब्रेक लगा है. यह ब्रेक है, स्पीड ब्रेकर है, स्टौप की निशानी है अभी नहीं कहा जा सकता. यदि औरतों को पुरुषों के बराबर आजादी चाहिए तो उन्हें वह सरकार चाहिए जो बराबरी के अधिकार दिलाने वालों का गुणगान करे न कि उन का जिन्होंने उन्हें घर निकाला दिया.

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