भारतीय संविधान ने चाहे महिलाओं को समानता के हक दिए हों लेकिन हकीकत यही है कि आज भी घरों में उन्हें अपने अधिकारों के लिए बहस करनी पड़ती है और अपनों से ही उलझना पड़ता है.

घर हो या दफ्तर हर जगह उन के अधिकारों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं और महिलाओं को कभी अज्ञानतावश तो कभी सामाजिक दबाव में आ कर उन अधिकारों की अनदेखी करनी पङती है, जिस के
चलते वे शोषण का शिकार होती हैं।

कई बार महिलाओं को अपने अधिकारों का पता ही नहीं होता जिस की वजह से वे बिना जबान खोले सबकुछ सहती चली जाती हैं. आइए, उन्हीं कुछ अधिकारों को जानते हैं जिन्हें हर महिला को पता होना चाहिए...

मैंटेनेंस यानी भरणपोषण का अधिकार

भारतीय संविधान महिलाओं को उन के भरण पोषण का अधिकार देती है, जिस के अनुसार हर विवाहित महिला को कानूनी रूप से अपने पती से मैंटेनेंस पाने का अधिकार है, भले ही वे साथ न रह रहे हों.

यह अधिकार भारत में महिलाओं के लिए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 ( एचएमए) और घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (डीवीए) जैसे कानूनों द्वारा संरक्षित किया गया है.

एचएमए की धारा 24 के अनुसार, समर्थ पत्नी या पति में से उस का पार्टनर मैंटेनेंस मांग सकता है क्योंकि भारतीय महिलाओं को शादी के बाद पूरी तरह पति और ससुराल पर आश्रित कर दिया जाता है. ऐसे में यह आधिकार उन के भरणपोषण की व्यवस्था सुनिस्चित करता है. मैंटेनेंस के रूप में महिलाओं को यह हक है कि पती से अपना खर्चा मांगे.

अगर दोनों के बीच तलाक की स्थिति हो तो ऐसे में तलाक की काररवाई के दौरान और तलाक के बाद भी उन्हें मैंटेनेंस का अधिकार है. पति इस की अनदेखी नहीं कर सकता.

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