नासिक की रहने वाली सुंदर, मृदुभाषी अभिनेत्री सुखदा खांडकेकर ने नाटकों, हिंदी, मराठी फिल्मों और कई शोज में काम किया है. उन्होंने संजय लीला भंसाली की 2015 की हिट फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ में बाजीराव की बहन अनुबाई की भूमिका निभा कर लोकप्रियता हासिल की. इस के अलावा सुखदा एक प्रशिक्षित कत्थक डांसर है और उन्होंने कई इवैंट्स के लिए कोरियोग्राफी का काम भी किया है.
बचपन से ही कला के माहौल में पैदा हुई सुखदा को ऐक्टिंग का शौक था, जिस में उन्हें पैरंट्स और पति ने साथ दिया है. इन दिनों सुखदा ने सोनी टीवी की शो ‘पुकार’ में 25 साल के बच्चे की मां की भूमिका निभाई है.
आइए, जानते हैं उन की कहानी उन की ही जबानी :
इस शो में काम करने की खास वजह
सरस्वती का चरित्र बहुत हो अलग है, मैं ने हमेशा कैरैक्टर ड्रिवन ऐक्टिंग ही करने का निर्णय लिया है. मैं ने मराठी और हिंदी दोनों इंडस्ट्री में काम किया है, जिस में विज्ञापनों, टीवी शोज, थिएटरों, फिल्में आदि सबकुछ हैं. इस की वजह है कि मैं चरित्र को चुनती हूं, भाषा को नहीं. मैं ने उर्दू और अंगरेजी में भी काम किया है, ऐसे में मुझे जब इस शो की कहानी का पता चला, जिस में कहानी एक मां सरस्वती के इर्दगिर्द घूमती हुई है, जिस में कई प्रकार के ऐक्स्प्रेशन, ड्रामा सबकुछ है, तो मुझे कुछ और सोचने की आवश्यकता नहीं पड़ी. डर इस बात से रहा है कि मैं इस चरित्र से कुछ साल छोटी हूं और टाइपकास्ट नहीं होना चाहती थी, लेकिन क्रिऐटिव डाइरैक्टर तुषार भारद्वाज ने समझाया कि यह जबरदस्ती सफेद बालों वाली मां मैं मां नहीं है, मैं जैसी हूं, वैसी ही मुझे दिखाया जाएगा, जो ऐलिगेंट लुक वाली होगी, जो मुझे करने में किसी प्रकार की आपत्ति नहीं हुई.
मां की भूमिका निभाना मुश्किल नहीं
कम उम्र में मां की भूमिका निभाने को ले कर पूछने पर सुखदा कहती स्क्रिप्ट सही होने पर अभिनय करना मुश्किल नहीं होता, उसे जितनी बार पढ़ी जाती है, किरदार तक पहुंचना आसान होता है. इस के अलावा मैं एक थिऐटर आर्टिस्ट हूं और किसी भी किरदार को करना मेरे लिए चुनौती होती है.
मिली प्रेरणा
अभिनय में आने की प्रेरणा के बारे में पूछने पर सुखदा कहती हैं कि मैं ने 5 साल की उम्र से कत्थक सीखा है. बचपन में मेरी मां किसी भी क्रिऐटिविटी वाले वर्कशौप के लिए मुझे ऐनरोल कर देती थी. 18 वर्ष तक होतेहोते मेरी पढ़ाई के साथसाथ डांस और ऐक्टिंग सभी एकसाथ चल रही थी. कालेज में भी मैं ने ऐक्टिंग किया है. मैं क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट हूं, पुणे जा कर मास्टर्स किया.
मुंबई से जब मैं पुणे पढ़ाई के लिए आई, तो पढ़ाई के साथ डांस चलता रहा और ऐक्टिंग भी म्यूजिक विडियो के साथ चल रहा था. मैं डांस और ऐक्टिंग को अलग नहीं कर पाई, क्योंकि डांस में भी ऐक्टिंग होता है और मेरी डांस की प्रस्तुति के बाद कौम्पलीमैंट्स भी खूब मिलते थे कि मैँ बहुत सुंदर और ऐलिगेंट दिखती हूं. मेरी मनोविज्ञान की पढ़ाई भी अभिनय में सहायता करती है, क्योंकि मैँ चरित्र के मूड को जल्दी समझ जाती हूं.
परिवार का सहयोग
अपने परिवार के सहयोग के बारें में सुखदा कहती हैं कि परिवार में कोई ऐक्टिंग फील्ड से नहीं है, लेकिन कला के क्षेत्र से अवश्य है. मेरी मां चित्रा देशपांडे एक संगीतज्ञ हैं, उन्होंने 35 साल तक सब को संगीत सिखाया है और अब हम दोनों की संस्था ‘आकार’ है.
मेरे पिता सुधीर पांडे एक पेंटर और स्कल्प्चरिस्ट थे, जो गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड होल्डर थे. कुछ साल पहले हम ने उन्हें खो दिया है. मेरे बड़े भाई पेंटर और आर्किटेक्ट है और विदेश में रहता है. परिवार में कला एकदूसरे से अलग भले है, लेकिन सभी कलाकर हैं. अभी जहां मेरी शादी हुई है, मेरे पति अभिजीत खांडकेकर भी ऐक्टर हैं. इसलिए मेरे सासससुर भी मेरे काम की बहुत सराहना करते हैं. सभी का सहयोग मेरे साथ रहता है.
पति का मिलना
पति अभिजीत से मिलने के बारें में सुखदा हंसती हुई कहती हैं कि भले ही हम दोनों नाशिक से हैं, लेकिन कभी नासिक में मिले नहीं थे. उन के पहले मराठी शो के दौरान मैं ने उन्हे फेसबुक पर सिर्फ बधाई दी थी, क्योंकि वे नाशिक के हैं और उन की एक बड़ी होर्डिंग मैं ने मुंबई में देखी थी. उन्होंने मेरी बधाई का उत्तर
दिया, ऐसे हमारी दोस्ती हुई और अंत में शादी में बदल गई.
पति अभिजीत की एक खूबी के बारें में पूछने पर सुखदा का कहना है कि मेरे पति हर काम में बहुत अधिक अनुशासन रखते हैं, समय पर काम पर जाना, घर लौटना, सब का खयाल रखना आदि करते हैं. यह अनुसाशन कई बार मुझे इरिटैट भी करती है। मसलन, शौपिंग पर जाने पर अगर समय में थोड़ीबहुत देर हुई, तो उन्हें अच्छा नहीं लगता.
संघर्ष के दिन
सुखदा अपने काम के लिए किए गए प्रयास को संघर्ष नहीं बल्कि अड़चन कहती हैं, क्योंकि संघर्ष की परिभाषा हर व्यक्ति के लिए अलगअलग है. उन का कहना है कि मेरी पहली प्रोफैशनल ऐक्टिंग एक उर्दू सीरीज थी, जिसे एक ब्रिटिश प्रोड्यूसर पाकिस्तान और बांग्लादेश के एनजीओ के लिए बनाया था. यह कमर्शियल प्रोजैक्ट नहीं था, लेकिन मेरे लिए बड़ा ब्रेक था. मुझे जो भी काम मिला अच्छा लगा है. मैं ने कभी बड़ा बैनर या पैसा नहीं देखा, बल्कि अभिनय के स्ट्रैंथ को देखा है. यही वजह है कि लगातार मुझे काम मिलता गया. फिर चाहे वह नाटकों में काम हो या हिंदी फिल्मों में, हर काम मेरे लिए एक चुनौती रही है, लेकिन मेरा ध्यान हमेशा काम पर केंद्रित रहता है. कई बार मुझे काम नहीं भी मिला है और मैँ कुछ दिनों तक घर पर भी बैठी रही, मायूसी भी हुई, लेकिन इन सभी चीजों को मैं ने सहजता से लिया है.
सुखदा के लिए जीवन जीने का मंत्र खुद को और आसपास को खुश रखना है, क्योंकि इस से उन्हें बहुत अच्छा महसूस होता है.