नवजातों की खरीदी के मामले के उजागर होने पर किसी को कोई आश्चर्र्य नहीं होना चाहिए. एक बेहद सामान्य, आमतौर पर नैतिक, मानवीय जरूरत के कानूनों के अंतर्गत अवैध घोषित कर के इसे कालाबाजारी में धकेल दिया गया है. जिन लोगों के बच्चे नहीं होते वे किसी न किसी को गोद लेना चाहते हैं और चूंकि अब रिश्तेदारों में गोद देने वाले बचे नहीं हैं, किसी दूरदराज इलाके के बच्चे को गोद लेना ही अकेला तरीका बचा है.

सरकारों ने गोद लेने की प्रक्रिया को बेहद जटिल बना दिया है. मानव तस्करी रोकने और बच्चों से भीख मंगवाने, उन्हें फैक्टरियों में स्लेव लेबर की तरह रखने, उन से प्रौस्टीट्यूशन करने से बचने के नाम पर जो कानून बनाए गए हैं वे ऐसे हैं कि कानूनी बच्चा पाना मुश्किल हो गया है. एक नवजात को खरीद लेना और फिर उसे नकली दस्तावेजों के सहारे अपना घोषित कर देना बेहद आसान है और व्यावहारिक भी. इसे अनैतिक भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि चाहे बच्चा खरीदा गया हो या खुद का जन्म दिया गया हो, उस पर पैसा बराबर का लगता है और एक बार अपने घर आ जाए तो अपना ही हो जाता है.

बच्चा अपना विधि विवाह से हुआ हो, यह समाज की देन है वरना कोई भी अपना उसी तरह हो जाता है जैसे एक पति या पत्नी बिना खून के रिश्ते से अपने हो जाते हैं. समाज ने पतिपत्नी को एकदूसरे का साथी समझ लिया है इसलिए जीवन आसान हो गया है वरना 2 अनजान जनों के रिश्तों का कोई ठीक आधार नहीं है. जब तक शरीर की चाहत हो या एकदूसरे से लेनादेना हो बात दूसरी वरना कैसी शादी, कैसा अपनापन? जो संबंध पतिपत्नी में एक लगाव के कारण पनपता है वह गोद लिए बच्चा चाहे खरीदा हो, चाहे रिश्तेदार का मंत्रशंत्र पढ़ कर लिया हो सब बराबर है. एक बार घर में एक शिशु आ जाए वह अपना हो जाता है.

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