सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त भोपाल के 71 वर्षीय श्रीराम को एक दिन उन के परिजन धोखे से एक वृद्धाश्रम में छोड़ गए. परिजनों द्वारा प्रताड़ित श्रीराम ने क्षुब्ध हो कर अपनी वसीयत वृद्धाश्रम के नाम कर कहा कि मृत्यु के बाद उन की देह को रिसर्च के लिए हौस्पिटल को दान कर दिया जाए.

3 साल पहले जब उन की मृत्यु हुई तो उन की देह हौस्पिटल को दान कर दी गई. बारबार सूचना देने के बाद भी उन के परिजन अंतिम संस्कार में नहीं आए. श्री हरि वृद्धाश्रम के संचालक के अनुसार, अब 3 साल बाद उन के बच्चे अपने पिता की कोई निशानी लेने आ रहे हैं ताकि अपने पिता का तर्पण कर सकें और अपने जीवन में आ रही तमाम परेशानियों से मुक्ति पा सकें.

भोपाल में ही आसरा वृद्धाश्रम की संचालिका राधा चौबे के अनुसार, कई बार परिजन सूचना देने के बाद भी मुखाग्नि देने तक नहीं आते. बाद में उन की चप्पलें, जूते, छड़ी, चश्मा, कपड़े जैसी निशानियां लेने आते हैं ताकि उन वस्तुओं को प्रतीक मान कर अपने पितरों का अंतिम संस्कार और तर्पण कर सकें.

डर है मुख्य कारण

वरिष्ठ काउंसलर निधि तिवारी कहतीं हैं, “दरअसल, अपने परिजन की मृत्यु के बाद उन का सामान लेने आने के पीछे मुख्य वजह डर है. अपने मातापिता के साथ किए गए दुर्व्यवहार के कारण कहीं न कहीं बच्चों के मन में अपराधबोध रहता है कि कहीं मर कर आत्मा उन्हें परेशान न करने लगे.”

वे आगे कहतीं हैं, ”आश्चर्य होता है कि जो बच्चे जीतेजी अपने मातापिता को एक गिलास पानी तक को नहीं पूछते वे बच्चे उन के जाने के बाद उन की निशानियां खोजते नजर आते हैं, इस की अपेक्षा यदि जीतेजी उन्हें थोड़ा प्यार और इज्जत दे कर दो मीठे बोल लें तो वे भी शांति से इस संसार से जा पाएंगे और बाद में इन्हें भी डर नहीं सताएगा.”

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