आर्थ्राइटिस (Arthritis) को अकसर एक बुजुर्गों की समस्या माना जाता है लेकिन यह केवल बुजुर्गों तक ही सीमित नहीं है. आजकल युवा भी इस दर्दनाक और जटिल समस्या का सामना कर रहे हैं. आर्थ्राइटिस एक ऐसी स्थिति है जिस में जोड़ों में सूजन और दर्द होता है. यह समस्या हड्डियों के बीच के कार्टिलेज के घिस जाने या शरीर के इम्यून सिस्टम द्वारा गलती से खुद के जोड़ों पर हमला करने से होती है. इस के कई प्रकार होते हैं जो युवाओं को अलगअलग तरीकों से प्रभावित कर सकते हैं.
मैक्स अस्पताल वैशाली के डा. अखिलेश यादव से जानते हैं कि युवाओं में आर्थ्राइटिस कितने तरह के होते हैं और उन से कैसे बचा जाए? युवाओं में मुख्य रूप से 5 तरह के आर्थ्राइटिस होते हैं:औस्टियोआर्थ्राइटिसऔस्टियोआर्थ्राइटिस आर्थ्राइटिस का सब से कौमन प्रकार है. यह तब होता है जब हड्डियों के बीच के कार्टिलेज जो हड्डियों को घिसने से बचाता है, धीरेधीरे टूटने लगता है. इस प्रकार का आर्थ्राइटिस आमतौर पर बुजुर्गों में होता है लेकिन आजकल युवाओं में भी इस का प्रभाव बढ़ता जा रहा है खासकर उन युवाओं में जो शारीरिक गतिविधियों में बहुत अधिक भाग लेते हैं या जिन का वजन ज्यादा होता है.औस्टियोआर्थ्राइटिस मुख्य रूप से घुटनों, हिप और रीढ़ की हड्डी के जोड़ों को प्रभावित करता है. इस में जोड़ों में दर्द, जकड़न और सूजन होती है जो धीरेधीरे बढ़ती जाती है. वजन कम करना, नियमित व्यायाम और जोड़ों को आराम देने से इस समस्या को कम किया जा सकता है.
रूमैटौइड आर्थ्राइटिसरूमैटौइड आर्थ्राइटिस एक औटोइम्यून बीमारी है, जिस में शरीर का इम्यून सिस्टम गलती से अपने ही जोड़ों को नुकसान पहुंचाता है. यह बीमारी खासकर हाथों, कलाइयों और पैरों के जोड़ों को प्रभावित करती है. इस के लक्षणों में जोड़ों में दर्द, सूजन और जकड़न शामिल है.अगर इस का समय पर इलाज न किया जाए तो यह समस्या धीरेधीरे जोड़ों को परमानैंट रूप से नुकसान पहुंचा सकती है.
रूमैटौइड आर्थ्राइटिस किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन यह अधिकतर 30-50 साल की उम्र के लोगों को प्रभावित करता है. इस के इलाज के लिए दवाइयों के साथसाथ शारीरिक व्यायाम और योग जरूरी होते हैं.एंकिलोजिंग स्पौंडिलाइटिसएंकिलोजिंग स्पौंडिलाइटिस एक प्रकार का आर्थ्राइटिस है जो मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है. इस के लक्षणों में पीठ के निचले हिस्से में दर्द और जकड़न शामिल है. यह बीमारी खासकर 20-30 साल के युवाओं में होती है.
इस समस्या में रीढ़ की हड्डी के जोड़ों में सूजन आ जाती है, जिस से दर्द और जकड़न होती है. अगर समय पर इस का इलाज न किया जाए, तो यह समस्या रीढ़ की हड्डी को परमानैंट नुकसान पहुंचा सकती है. फिजियोथेरैपी, व्यायाम और कुछ विशेष दवाइयों के माध्यम से इस बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है.गठियागठिया भी एक प्रकार का आर्थ्राइटिस है जो शरीर में यूरिक ऐसिड के बढ़ने से होता है. इस से अचानक जोड़ों में तेज दर्द, सूजन और रैडनेड हो जाती है.
यह समस्या आमतौर पर पैरों के अंगूठों, घुटनों और ऐंकल में होती है.गठिया के हमले आमतौर पर अचानक होते हैं और ये बेहद दर्दनाक होते हैं. इसे कंट्रोल करने के लिए सही खानपान और दवाओं की जरूरत होती है. खानपान में नमक और प्रोटीन की मात्रा को कंट्रोल रखना चाहिए, साथ ही दवाओं से यूरिक ऐसिड के स्तर को कम किया जाता है.जुवेनाइल आर्थ्राइटिसजुवेनाइल आर्थ्राइटिस एक प्रकार का आर्थ्राइटिस है जो बच्चों और टीनऐजर्स को प्रभावित करता है. इस के लक्षणों में जोड़ों में सूजन, दर्द और कभीकभी बुखार या त्वचा पर रैशेज भी हो सकते हैं. यह समस्या बच्चों में कम उम्र में शुरू होती है लेकिन इस का असर 20 साल की उम्र तक रह सकता है.जुवेनाइल आर्थ्राइटिस के कारण बच्चे की शारीरिक गतिविधियों में रुकावट आ सकती है. इस का इलाज समय पर करना बहुत जरूरी है ताकि भविष्य में इस समस्या के गंभीर परिणामों से बचा जा सके.
आर्थ्राइटिस के कारणयुवाओं में आर्थ्राइटिस होने के कई कारण हो सकते हैं, जिन में हैरीडिटी, चोट और अस्वस्थ जीवनशैली शामिल है. आर्थ्राइटिस होने का मुख्य कारण जोड़ों में सूजन और कार्टिलेज का घिस जाना होता है जो समय के साथ बिगड़ता जाता है. खेलकूद में चोट लगना, ज्यादा वजन और शारीरिक गतिविधियों की कमी भी आर्थ्राइटिस को बढ़ा सकती हैं.आर्थ्राइटिस से बचाव के उपायआर्थ्राइटिस की समस्या को पूरी तरह से खत्म करना संभव नहीं है लेकिन इसे कंट्रोल किया जा सकता है.
इस के लिए निम्न आसान उपाय अपनाए जा सकते हैं:
वजन को कंट्रोल में रखना: वजन ज्यादा होने पर जोड़ों पर दबाव बढ़ता है, जिस से आर्थ्राइटिस की समस्या और बढ़ सकती है. सही खानपान और व्यायाम से वजन को कंट्रोल में रखा जा सकता है.
नियमित व्यायाम: व्यायाम से जोड़ों की ताकत और फ्लैक्सिबिलिटी को बढ़ाया जा सकता है, जिस से आर्थ्राइटिस की समस्या कम होती है. स्विमिंग, साइकिल चलाना, योग अच्छे औप्शन हो सकते हैं.संतुलित आहार: सही खानपान, जिस में फल, सब्जियां और अनाज शामिल हो जो शरीर में आवश्यक पोषक तत्त्वों की सप्लाई करता है. इस से हड्डियां और जोड़ों को मजबूती मिलती है.
दवाओं का सही समय पर सेवन: आर्थ्राइटिस के इलाज में दवाइयां महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. डाक्टर द्वारा सुझाई गई दवाओं का सही समय पर सेवन करें और नियमित जांच करवाते रहें.
आराम देना: जब जोड़ों में अधिक दर्द या सूजन हो तो उन्हें आराम देना जरूरी होता है. ज्यादा काम करने से जोड़ों पर और अधिक दबाव बढ़ सकता है.आर्थ्राइटिस अब केवल बुजुर्गों तक सीमित नहीं रहा है.
युवाओं में भी इस समस्या का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है. इस के विभिन्न प्रकार अलगअलग जोड़ों को प्रभावित करते हैं, जिस से दैनिक जीवन में कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती हैं.
अगर आप को जोड़ों में किसी भी तरह का दर्द, सूजन या असुविधा महसूस हो तो तुरंत डाक्टर से सलाह लें. समय पर डाक्टर से परामर्श लेना, स्वस्थ जीवनशैली अपनाना और सही खानपान का पालन करना आर्थ्राइटिस को कंट्रोल करने के महत्त्वपूर्ण उपाय हैं.