दीवाली का त्योहार आने से कुछ दिनों पहले करवाचौथ का व्रत आता है, जिस में पत्नियां पूरे दिन भूखेप्यासे रह कर रात को चांद देख कर पति की पूजा करती हैं और फिर खाने पर टूट पड़ती हैं. वही सारी पत्नियां दीवाली आते ही उन पतियों को घर के काम करने में लगाने में जरा भी देरी नहीं लगातीं.

करवाचौथ पर पूजे जाने वाले वे सारे पति दीवाली पर घर के कोनेकोने के जाले, पंखे और दीवारों को साफ करते नजर आते हैं. यह हकीकत भी है और फिलहाल किया हुआ मजाक भी. लेकिन सचाई यही है कि शादी के बाद पति का सच्चा प्यार तभी नजर आता है जब वह पत्नी के साथ बराबरी करते हुए घर के कामकाज में हाथ बटाता है. अगर पत्नी हाउसवाइफ है, तो वह फिर भी पति के थोड़ेबहुत नखरे झेल लेती है लेकिन कहीं अगर वह वर्किंग वूमन है तो फिर तो उस पति की शामत ही आ जाती है जो पति निखट्टू और कामचोर है और जो दीवाली के मौके पर भी पत्नी की काम में मदद करने के बजाय मोबाइल पर गेम खेलते या यारदोस्तों के साथ बतियाते नजर आते हैं, वही पत्नी अगर उन से कोई काम बोल भी दे तो वे इतना खराब काम करते हैं कि पत्नी भी सिर पीटते हुए सोचती है की इन को बोलने से अच्छा तो मैं खुद ही कर लेती.

जोरू का गुलाम ही बनें तो अच्छा

कई बार पति जानबूझकर खराब काम करते हैं, तो कई बार सही में उन को ठीक ढंग से काम करना नहीं आता. ऐसे मौके पर पत्नी का पारा सातवें आसमान पर होता है, तो बड़े से बड़े सुरमा पति भी भीगी बिल्ली बन जाते हैं.

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